Wednesday, January 22, 2025
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लेख/विचार

मंहगाई की मार से बेहाल आदमी

ये एक चलन है कि पाखंडपूर्ण सरकारें जो सत्ता में रहकर राजनीतिक गुनाह करते हैं। सत्ता से हटते ही स्वतः उसकी आलोचना करना शुरू कर देते हैं और सत्ता के इस खेल में आम आदमी पिस कर रह जाता है। महंगाई जो सुरसा की तरह मुंह फाड़े हुए है उसका मुंह लगातार फैलता ही जा रहा है। ‘बहुत हुई महंगाई की मार’ का नारा देने वाली सरकार भी इस महंगाई रोकने में नाकाम साबित हो रही है। इस आपदाकाल में जहां लोग बेरोजगारी और भुखमरी से जूझ रहे हैं। वहाँ महंगाई की मार का बोझ उठा पाना आम आदमी के लिए बहुत मुश्किल हो रहा है।
पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी करके और आम आदमी की रोजमर्रा की जरूरतों की चीजें भी परिवहन लागत बढ़ने से महंगी होती जा रही है। कोरोना की मार से अधमरा हुआ आदमी बेरोजगारी और महंगाई दोनों की मार झेल रहा है। छह महीने से रसोई गैस के दाम बढ़ते ही जा रहे हैं। साथ ही गैस की सब्सिडी खत्म कर दी गई है। खाने के तेल कीमत ₹200 से ऊपर हो गई है। डीजल पेट्रोल की कीमतों में भी लगातार इजाफा हो रहा है। ऐसे में आम आदमी की जेब का और रसोई का बजट बिगड़ता जा रहा है। इस महामारी का प्रभाव लोगों के काम धंधे पर भी बहुत पड़ रहा है। लोन की किश्ते, स्कूल की फीस, डॉक्टर की फीस और अन्य खर्चे उठा पाने में लोग अक्षम हो रहे हैं। ऐसे में निराश व्यक्ति आत्महत्या की ओर कदम बढ़ा रहा है।
एक जानकारी के आधार पर रीना कार के पति की मृत्यु हो गई। रीना को समझ में नहीं आ रहा कि वह घर कैसे चलाएं। लड़की की इंजीनियरिंग की फीस भरने को पैसे नहीं है। घर में ए सी है लेकिन लाइट बिल बढ़ जाने की वजह से वह इसे चलाती नहीं। खाद्य पदार्थ महंगी होने के कारण खाना भी एक वक्त ही बनाती है। अभी कुछ समय पहले खबर आई थी कि उस बत्तीस साल के बेरोजगार राकेश दास ने नोएडा के एक होटल में नाइट्रोजन गैस सूंघकर आत्महत्या कर ली। सुसाइड नोट में उसने लिखा है नौकरी जाने के बाद वह कर्ज में डूब गया। पांच लाख से ज्यादा का कर्ज हो जाने के कारण और नौकरी ना होने की वजह से वह आत्महत्या कर रहा है। इससे इतर गरीबों की हालत भी कुछ कम खराब नहीं है। एक मजदूर राकेश्वर ने अपने बच्चों का स्कूल से नाम इसलिए कटवा दिया कि जब खाने के लिए पैसे नहीं है तो स्कूल की फीस कहां से भरेंगे।
कोरोना की तीसरी लहर अभी बाकी है मगर महंगाई और बेरोजगारी आम आदमी की पहले ही कमर तोड़ दे रही है। हालात इतने बदतर होते जा रहे हैं यदि सरकार ने महंगाई पर लगाम और रोजगार के अवसर नहीं तलाश नहीं किये तो तो आम आदमी की जिंदगी बहुत कठिन हो जाएगी। काम धंधा ठप होने की वजह से मजदूरों को दिहाड़ी नहीं मिल पा रही है। वह अपने शहर में पलायन करके भी खाली बैठे हुए हैं। राजनीतिक स्वार्थ ना साधकर बल्कि जनता के हितों को ध्यान में रखकर योजनाएं शुरू करने के साथ.साथ उस पर अमल भी किया जाए तभी इन परेशानियों से बाहर आया जा सकता है।

प्रियंका वरमा माहेश्वरी
(गुजरात)

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दुआओं का असर

विशाल ने अपनी बेटे कार्तिक के जन्मदिन पर अपने सभी रिश्तेदारों को आमंत्रित किया हुआ था। सभी उसके शानो शौकत देखकर हैरान थी कि कैसे इतना सब कुछ उसने हासिल किया। कुछ लोगों ने उसकी पत्नी को ही उसकी तरक्की का श्रेय देते हुए कहां की यह सब उसे उसकी पत्नी के प्रेम, परिश्रम और विश्वास की बदौलत ही मिला है। कुछ ने कहा कि विशाल तुम बहुत भाग्यशाली हो जो तुम्हें इतनी अच्छी पत्नी मिली जिसने तुम्हारी अधूरी पढ़ाई को पूरा करने हेतु इतना प्रेरित किया और हर कदम तुम्हारा इतना साथ दिया जिसके बदौलत तुम आज बैंक के मैनेजर बन गए हो। पर विशाल ने इसके जवाब में कहा कि इसका पूरा श्रेय हमारी माता जी को जाता है और ये उन्हीं के दुआओं का असर है कि मुझे प्रियंका जैसी नेक दिल पत्नी मिली जिसने मुझ जैसे पढ़ाई में इतने कमजोर इंसान को इतनी सफलता हासिल करने को प्रेरित किया।

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जरा गौर करें

आजकल मैं सोशल मीडिया पर छोटी छोटी रील्स देख रही हूं। शुरू शुरू में दिलचस्पी बढ़ी तो स्क्रोल करते गई। आधा एक घंटा कब गुजर गया पता ही नहीं चला लेकिन जल्दी इन छोटे.छोटे वीडियोज़ से मुझे घुटन होने लगी। अजीब बेहूदा अंदाज़ रहता है लोगों का, बेहूदे डांस, फूहड़ पहनावा और उस पर अम्मा की उम्र की महिला लचकती हुई। कुछ- कुछ बहु, भाभी की उम्र की भी महिलाएं रहतीं हैं। ना ही शरीर के डील डौल का ख्यालए ना कपड़े पहनने का तरीकाए ना ही डांस का तरीका और ना ही गाने की धुन का ख्याल बस किसी तरह से लोगों को दिखना है। बच्चों को क्या कहें जब बड़ी उम्र की महिलाएं वीडियो बनाने में उनसे पीछे नहीं है। समझ में नहीं आता है कि यह अपने आप को लोगों के सामने परोस रही है या कौन सी कला का प्रदर्शन कर रही हैं। लड़कियाँ भी बड़े उत्साह से उत्तेजक और भद्दे नृत्य का प्रदर्शन करती हैं। ये जाहिर सी बात है कि वो अपना शोषण खुद करती हैं।

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धर्मांतरणःसमस्या या साज़िश

कुछ दिनों पहले उत्तर प्रदेश में लगभग एक हजार लोगों के धर्मांतरण का मामला सामने आया था। खबरों के अनुसार इन लोगों में मूक बधिर बच्चों से लेकर युवा और महिलाएं भी शामिल हैं। मामले की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि धर्म बदलने वाले इन लोगों में ज्यादातर पढ़े लिखे युवा थे। सरकारी नौकरी करने वाले से लेकर बीटेक कर चुका शिक्षक और एमबीए पास युवक से लेकर सॉफ्टवेयर इंजीनियर, एमबीबीएस डॉक्टर तक शामिल हैं।दिलचस्प बात यह है कि ये सब उस प्रदेश में हुआ जहां धर्मांतरण के खिलाफ 2020 में ही एक सख़्त कानून लागू कर दिया गया था। लेकिन हमारे देश में धर्मांतरण की समस्या केवल एक प्रदेश तक सीमित नहीं है। झारखंड मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ केरल जैसे देश के कई राज्यों में धर्मांतरण के मामले आए दिन सामने आना एक साधारण बात है। सत्य तो यह है कि हमारे देश में धर्मांतरण की समस्या काफी पुरानी है। यही कारण है कि इस विषय में महात्मा गांधी कहते थे कि मैं विश्वास नहीं करता कि एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति का धर्मांतरण करे। दूसरे के धर्म को कम करके आँकना मेरा प्रयास कभी नहीं होना चाहिए। मेरा मानना है कि मानवतावादी कार्य की आड़ में धर्म परिवर्तन रुग्ण मानसिकता का परिचायक है।

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टीकाकरण के बारे में गलतफहमी न पालें

कोविड-19 के टीकाकरण के बारे में अज्ञानता और अफ़वाहों के चलते ग्रामीण इलाकों में ज्यादातर लोग टीका लगवाने से कतरा रहे है। आज हम इतिहास का सबसे बड़ा सामूहिक टीकाकरण अभियान देख रहे हैं। बड़ी संख्या में लोगों को टीका लगाया जा रहा है। अभी तक कहीं से ऐसी कोई दुर्लभ घटना सामने नहीं आई की टीका लगाने के बाद दुष्परिणाम देखा गया हो।
कुछ लोग कोविड को गंभीरता से नहीं ले रहे इसे सामान्य बुखार ही समझते हैं। लोगों को यह समझने की जरूरत है कि कोविड भले कुछ मामलों में हल्का असर दिखा रहा हो, लेकिन जब वह गंभीर रूप ले लेता है, तो उससे जान भी जा सकती है, और हमने लाखों लोगों को जान गंवाते देखा है। कोविड से बचने का एक मात्र उपाय वैक्सीन है। भारत में उपलब्ध कोविड-19 वैक्सीनें पूरी तरह सुरक्षित है।

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जिंदगी के नियम भी कबड्डी के खेल जैसे हैं – सफलता की लाइन टच करते ही लोग आपके पैर खींचने लग जाते हैं

श्रेष्ठतम सफलता, कांटो का ताज – हिम्मत, हौसला और जज़्बा रूपी मंत्रों का प्रयोग जरूरी – एड किशन भावनानी
किसी ने ठीक ही कहा है कि “तू अपनी खूबियां ढूंढ,कमियां निकालने के लिए लोग हैं”। “अगर रखना ही है कदम तो आगे रख, पीछे खींचने के लिए लोग हैं”, वाह क्या बात है!!!…साथियों हमारे बड़े बुजुर्गों की जो कहावतें हैं, वह आदिलोक आदिकाल की हैं, परंतु हम आज के युग में भी और अपनी अगली पीढ़ियों में भीदेखेंगे तो यह बिल्कुल फिट बैठती है। बड़े बुजुर्गों के एक-एक शब्द हीरे मोती के तुल्य हैं, बस पहचानने वाले जौहरी वाली नजर की जरूरत है।

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आज की पीढ़ी और माँ बाप

कुछ घरों में माँ बाप के हालात देखकर आँखें भर आती है। नये ज़माने के बच्चों की दुनिया में क्यूँ समा नहीं सकते माँ-बाप जब ये बच्चें बड़े हो जाते है। क्यूँ वो बच्चें इतने ज़्यादा समझदार हो जाते है जब माँ-बाप बूढ़े हो जाते है। माँ-बाप दो मिलकर दो तीन बच्चों को लाड़ से पालते है पर दो तीन बच्चें मिलकर माँ बाप को ढंग से रख नहीं सकते।
माना की एक पीढ़ी का अंतर हो जाता है माँ बाप और बच्चों की सोच के बीच। पर जिनको अपने पैरों पर चलना सिखाया वही बच्चें बोलते है की आपको कुछ पता नहीं, आप नहीं समझेंगे या आपको कुछ आता नहीं ये कहाँ के संस्कार है।

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वह कोठे वाली जो ठहरी

“फूलों को कहाँ शौक़ बर्बादी का, भंवरों की फ़ितरत है चूसने वाली”
रुह उसकी छटपटाती पड़ी है खुद के वजूद को समेटे खामोशी ओढ़े एक गंदी नाली के कीड़े सी, आस-पास भूखे भेड़िए रेंगते है तन पिपासा की लालसा लिये। कहाँ शौक़ उसे कोठे वाली कहलाने का, पेट की आग के आगे परवश हो कर बिछ जाता है तन वहसिओं का बिछौना बनकर, उसके मन की पाक भूमि को कचोटती है ये क्रिया। किसको परवाह की दो बोल से नवाज़े शब्दों में पिरोकर हमदर्दी।
भाता है उसे खुद को पहने रहना क्यूँ कोई उसके अहसास को ओढ़े। दिन में नफ़रत भरी नज़रों के नज़रिये से तौलने वाले रात की रंगीनीयों में पैसों का ढ़ेर लगाते है। पी कर उसके हाथों से जाम ज़हर आँखों से घोलते है। कोई तो देह से परे उसकी पाक रुह को छूता जो पड़ी है अनछूई नीर सी निर्मल।
जो जीना चाहती है एक उजली ज़िस्त

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तीसरी लहर के भयावह रूप को न्योता देती लापरवाही चिंता बढ़ाते कोरोना के टूटते नियम

दुनियाभर में लाखों लोगों की जान ले चुकी कोरोना महामारी से जंग जीतने में इजरायल स्वयं को कोविड मुक्त घोषित करने वाला दुनिया का पहला ऐसा देश बन चुका है, जहां 70 फीसदी से ज्यादा आबादी का वैक्सीनेशन किए जाने के बाद सरकार द्वारा फेस मास्क लगाने के अनिवार्य नियम को हटा दिया गया है। इसके अलावा केवल दो सप्ताह में ही 90 फीसदी से भी ज्यादा व्यस्क आबादी का वैक्सीनेशन करने वाला भूटान, कड़े निर्णयों की बदौलत न्यूजीलैंड, ज्यादातर आबादी का वैक्सीनेशन होने के कारण चीन तथा पूर्ण रूप से वैक्सीनेशन होने के पश्चात् अमेरिका में भी कई जगह मास्क फ्री हो गई हैं। अमेरिका में तो सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन द्वारा घोषणा भी की जा चुकी है कि जो लोग पूरी तरह से कोविड वैक्सीन लगवा चुके हैं, उन्हें अब अकेले चलते समय, दौड़ते, लंबी पैदल यात्रा या बाइक चलाते समय बाहर मास्क पहनने की आवश्यकता नहीं है।

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हमारा गुस्सा और क्रोध हमारे जीवन की सभी समस्याओं की वजह में से एक है

हर बात और स्थिति को अत्यंत सहजता में लेना ही गुस्से और क्रोध पर नियंत्रण का मूल मंत्र हैं – एड किशन भावनानी
आज के युग में हर व्यक्ति को जीवन के किसी न किसी पड़ाव में विपरीत परिस्थितियों का निर्माण होने के कारणों में कहीं ना कहीं एक कारण उसका गुस्सा या क्रोध भी होगा। अगर हम अत्यंत संवेदनशीलता और गहनता से उत्पन्न हुई उन परिस्थितियों की गहनता से जांच करेंगे तो हमें जरूर यह कारण महसूस होगा। गुस्से और क्रोध का वह छोटा सा पल ऐसी अनेकों विकराल स्थितियों और परिस्थितियों को पैदा कर देता है, जिसकी हमें उम्मीद भी नहीं रहती और फिर बड़े बुजुर्ग लोग कहते हैं ना कि, जब चिड़िया चुग गई खेत अब पछतावे का होए। बस हमें उस गुस्से क्रोध के उस पल को काबू में रखने के मंत्र सीखने होंगे जो कि आसान है।

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