देश की समृद्धि का रास्ता गांवो के खेतों और खलिहानों से होकर गुजरता है। गांव में जन्मे चौधरी चरण सिंह गांव, गरीब व किसानों के तारणहार थे, उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन गांव के गरीबों के लिए समर्पित कर दिया, इसलिए देश के लोग मानते हैं कि चौधरी चरण सिंह एक व्यक्ति नहीं, विचारधारा का नाम है। उनका कहना था, कि भ्रष्टाचार की कोई सीमा नहीं है, चाहे कोई भी लीडर आ जाए, चाहे कितना ही अच्छा कार्यक्रम चलाओ जिस देश के लोग भ्रष्ट होंगे वह देश कभी तरक्की नहीं कर सकता। स्वतंत्रता सेनानी से लेकर देश के प्रधानमंत्री बनने तक चौधरी साहब ने ही भ्रष्टाचार के खिलाफ सबसे पहले आवाज बुलंद की और आहान किया कि भ्रष्टाचार का अंत ही देश को आगे ले जा सकता है। वह बहुमुखी प्रतिभा के धनी और प्रगतिशील विचारधारा वाले व्यक्ति थे।
चौधरी चरण सिंह का जन्म किसान जाट परिवार में 23 दिसंबर सन 1902 में उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में चौधरी मीर सिंह के परिवार में हुआ था। इनके पिता किसान थे, उनके व्यवहार में इनके पिता की छवि झलकती थी। गरीबी में जीवन बिताने के बावजूद भी इन्होंने अपनी पढ़ाई को हमेशा पहला दर्जा दिया है। इनके परिवार का संबंध 1857 की लड़ाई में भाग लेने वाले राजा नाहर सिंह से था। इनके पिता का अध्ययन को लेकर बहुत रुचि थी, इसलिए इनका भी झुकाव हमेशा से शिक्षा की ओर रहा। प्रारंभिक शिक्षण इन्होंने नूरपुर ग्राम से की, इसके बाद मैट्रिक इन्होंने मेरठ के सरकारी उच्च विद्यालय से किया। 1923 में विज्ञान के स्नातक की डिग्री ली, 2 साल के बाद 1925 में कला स्नातकोत्तर की परीक्षा से पास होने के बाद वकील की परीक्षा पास की, इसके बाद इन्होंने गाजियाबाद में वकालत का कार्यभार संभाला। इनका विवाह गायत्री देवी से हुआ था। स्वतंत्रता आंदोलन में चौधरी चरण सिंह का योगदान रहा।
चौधरी चरण सिंह किसानों के नेता माने जाते रहे हैं, उनके द्वारा तैयार किया गया जमींदारी उन्मूलन विधेयक राज्य के कल्याणकारी सिद्धांत पर आधारित था।
लेख/विचार
ग़ज़ल
कुछ करो जीतने के लिए साथियों।
अब चलो जीतने के लिए साथियों।
जो किया अब तलक भूल जाओ उसे,
अब लड़ो जीतने के लिए साथियों।
कल किया था जिसे फिर करो अब वही,
फिर बढ़ो जीतने के लिए साथियों।
साम हो दाम हो दण्ड हो भेद हो,
यूँ चलो जीतने के लिए साथियों।
चैन से बैठने का नहीं अब समय,
कुछ करो जीतने के लिए साथियों।
हमीद कानपुरी, कानपुर
एग्जिट पोल, बड़ा झोल
तेलंगाना विधानसभा चुनाव की मतदान प्रक्रिया के समापन के साथ ही पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव को लेकर तमाम सर्वे एजेंसियों ने अपने-अपने एग्जिट पोल्स का प्रसारण कर दिया था। मिजोरम में 7 नवम्बर, छत्तीसगढ़ में 7 और 17 नवम्बर, मध्य प्रदेश में 17 नवम्बर, राजस्थान में 25 नवम्बर और तेलंगाना में 30 नवम्बर को मतदान हुआ था। अधिकांश एग्जिट पोल में राजस्थान और मध्य प्रदेश में सत्ता के लिए कांटे की टक्कर होने का अनुमान लगाया था लेकिन कुछ एग्जिट पोल ऐसे भी थे, जिनमें किसी में कांग्रेस की एकतरफा जीत का अनुमान व्यक्त किया गया था तो किसी में भाजपा की। राजस्थान में आज तक-एक्सिस माय इंडिया के एग्जिट पोल में कांग्रेस के 86-106 जबकि भाजपा के 80-100 सीटें जीतने का अनुमान लगाया था, वहीं जन की बात के एग्जिट पोल के अनुसार कांग्रेस को केवल 62-85 सीटें और भाजपा को 100-122 सीटें मिलने का अनुमान था। इंडिया टीवी-सीएनएक्स के एग्जिट पोल में कांग्रेस को 94-104 सीटें मिलने का अनुमान था जबकि भाजपा के 80-90 सीटों पर ही सिमटने की भविष्यवाणी भी थी जबकि दैनिक भास्कर के एग्जिट पोल के मुताबिक भाजपा को 95-115 और कांग्रेस को 105-120 सीटें मिलने की संभावना व्यक्त की गई थी। जन की बात के एग्जिट पोल में भाजपा को 100-123 और कांग्रेस को 102-125 सीटें मिलने का अनुमान था। टीवी-9 पोलस्ट्रैट के एग्जिट पोल में कहा गया था कि भाजपा को 106 और कांग्रेस को 111-121 सीटें मिल सकती हैं। छत्तीसगढ़ में तो लगभग सभी एग्जिट पोल कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिलने की बात कही गई थी।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के युग में डीपफेक एक बड़ी चुनौती
डीप फेक का गलत इस्तेमाल हर क्षेत्र में होने लगा है, डीप फेक लोकतंत्र के लिये खतरा है। डीप फेक मतदाता के मन को बदल सकता है।
डीपफेक द्वारा उत्पन्न चुनौतियाँ सबसे पहले विश्वास और प्रतिष्ठा का क्षरण करती है। डीपफेक का इस्तेमाल गलत सूचना फैलाने, प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने और सामाजिक अशांति भड़काने के लिए किया जा सकता है। एक बार जब कोई डीपफेक वीडियो वायरल हो जाता है, तो नुकसान को रोकना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि लोग वास्तविक और हेरफेर की गई सामग्री के बीच अंतर करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं। व्यक्तियों और समाज के लिए खतरा अब सिर पर आकर खड़ा हो गया है। डीपफेक का इस्तेमाल साइबर बुलिंग, ब्लैकमेल और यहां तक कि चुनावों में हस्तक्षेप करने के लिए भी किया जा सकता है। इसके दुरुपयोग से व्यक्तियों और समाज को नुकसान पहुंचने की संभावना बहुत अधिक है। पता लगाने और जिम्मेदार ठहराने में कठिनाई पहले से ज्यादा बढ़ गयी है। डीपफेक का परिष्कार लगातार विकसित हो रहा है, जिससे उनका पता लगाना और उनका पता लगाना कठिन होता जा रहा है। यह कानून प्रवर्तन और सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म के लिए एक चुनौती है। कानूनी और नैतिक विचार कमजोर पड़ते दिखाई दे रहें है। डीपफेक के उद्भव ने गोपनीयता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) की सीमाओं के संबंध में जटिल कानूनी और नैतिक प्रश्न खड़े कर दिए हैं।
डीपफेक ऐसे वीडियो या ऑडियो रिकॉर्डिंग हैं, जिन्हें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का उपयोग करके हेरफेर किया जाता है, ताकि यह प्रतीत हो सके कि कोई कुछ ऐसा कह रहा है या कर रहा है जो उन्होंने कभी नहीं किया।
“बहुमूल्य जिंदगी”
अपनों के साथ खुशी के कुछ पल बिताए,
बड़ी अनमोल है सबकी जिंदगी।
जाने कब मुख मोड़ ले क्षणभंगुर जिंदगी,
सुन बड़ी अजीब है यह जिंदगी।
अभी वक्त है संभल जा तू सबसे मिल जा,
फिर मौका न देगी यह जिंदगी।
होली पर्व के रंग सी सनी है यह जिंदगी,
ईद में गले लगती यह जिंदगी।
ईश्वर की अद्भुत संरचना है यह जिंदगी,
बड़ी नाजुक सी है यह जिंदगी।
ये हिंदू मुस्लिम सिख इसाई की जिंदगी,
वतन की सुरक्षा में सब जिंदगी।
इन वीरों की बड़ी ख़ौफ भरी है जिंदगी।…
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव: सर्वे में शिवराज के मुकाबले कमलनाथ पीछे !
राजीव रंजन नागः नई दिल्ली। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव एक उच्च जोखिम वाली लड़ाई है, जिसमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली भाजपा और कांग्रेस, जिन्होंने कमल नाथ को अपने मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश किया है, सत्ता के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। पार्टियां आदिवासी, ओबीसी और महिला मतदाताओं को लुभाने के लिए मुफ्त सुविधाएं और गारंटी दे रही हैं।
मध्य प्रदेश में अपनी नई सरकार चुनने से दो हफ्ते से भी कम समय पहले, एनडीटीवी-सीएसडीएस लोकनीति पोल से पता चला है कि मतदाता कांग्रेस के कमल नाथ के मुकाबले मौजूदा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पसंद करते हैं, जो उनसे पहले राज्य का नेतृत्व कर रहे थे। हालाँकि, मार्जिन भाजपा को थोड़ा विराम दे सकता है, क्योंकि यह केवल चार प्रतिशत अंक है।
राज्य के 230 विधानसभा क्षेत्रों में से 30 में 24 अक्टूबर से शुरू होने वाले सप्ताह में 3,000 से अधिक लोगों का सर्वेक्षण किया गया और नतीजे भाजपा को उत्साहित करेंगे क्योंकि लोगों का मानना है कि चौहान सरकार के तहत सड़कों, बिजली और अस्पतालों में सुधार हुआ है। उत्तर पार्टी को सोचने का अवसर भी देंगे क्योंकि लोग इस बात पर समान रूप से विभाजित हैं कि क्या इसके तहत महिला सुरक्षा में सुधार हुआ है या बदतर हुई है, और 36 % ने कहा है कि दलितों की स्थिति खराब हो गई है।
जब सर्वेक्षण में शामिल लोगों से पूछा गया कि क्या 2018-2020 की कमलनाथ सरकार ने बेहतर प्रदर्शन किया या 2020-2023 की शिवराज सिंह चौहान सरकार ने बेहतर प्रदर्शन किया, तो कांग्रेस उस मामूली अंतर से भी उत्साहित हो सकती है। जहां 36 प्रतिशत ने कहा कि चौहान सरकार ने बेहतर काम किया, वहीं 34 प्रतिशत ने नाथ सरकार के पक्ष में बात की।
कांग्रेस ने 2018 में सरकार बनाई थी लेकिन 2020 में वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में विद्रोह के बाद कमल नाथ को पद छोड़ना पड़ा, जो भाजपा में शामिल हो गए।
धर्म जाति पर भारी पड़ने लगी जेंडर राजनीति
भारत में धर्म, जाति की राजनीति के बाद जेंडर आधारित राजनीति का चलन तेजी से लोकप्रिय हुआ है जिसमें महिला मतदाताओं में पैठ बनाना लक्ष्ये होता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के केंद्र में आने के बाद चुनाव में जीत के इस छुपे राज पर से धीरे – धीरे पर्दा उठने लगा है। दरअसल जेंडर राजनीति की गंभीर शुरूआत गुजरात में 2002 में शुरू हुई और इसे भुनाने की सुनियोजित पहल नरेन्द्र मोदी ने की थी जो वह वहां के मुख्यमंत्री थे। मोदी के मुख्य मंत्री बनने के बाद चुनावी सभाओं में महिलाओं की उपस्थिति निरंतर बढती गई जिसकी एक वजह यह भी थी कि गोधराकांड और उसके बाद हुये दंगों के बाद पहली बार गुजरात में चुनाव हो रहे थे। दंगों से निबटने में मोदी की भूमिका का लेकर विपक्ष खासकर कांग्रेस ने आरोपों की झडी लगा दी थी और उन्हें घेरने के लिये कोई कसर नहीं छोडी गई थी।
मोदी गुजरात विधानसभा चुनाव जीत गये और दोबारा मुख्य मंत्री बने। मोदी ने चुनावी जनसभाओं में महिलाओं की बडी संख्या में उपस्थिति को ध्यान में रखकर काम करना शुरू किया और जेंडर आधारित राजनीति की ठोस शुरूआत की। मोदी ने नवजात कन्याओं से लेकर बुजुर्ग महिलाओं के कल्याण के लिये अनेक योजनाओं की शुरूआत की। मोदी की कार्यशैली में योजनाओं के त्वरित क्रियान्वायन और कडी निगरानी को सर्वाेच्च प्राथमिकता मिलती रही है और वह लाल फीताशाही के अवरोधों को दूर करने में कसर नहीं रखते हैं।
गुजरात में विकास और जेंडर आधारित राजनीति की सफलता को देखते हुये अन्य राज्यो की भाजपा सरकारों ने उसे अपनाया जिसमें मध्यरप्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी जेंडर आधारित राजनीति का बडा लाभ मिला और लक्ष्मी लाडली जैसी योजनाओं के कारण जनता में ‘मामा’ कहे जाने लगे। भाजपा में मोदी के बाद शिवराज और अब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ जेंडर की राजनीति करके महिला मतदाताओं को रिझाने में कामयाब हो रहे हैं।
करवा चौथ व्रत, संकष्टी /करक गणेश चतुर्थी व्रत, पूजन एवं विधान
रायबरेली। गोकर्ण ऋषि की तपस्थली पर मां गंगा के पावन गोेकना घाट के वरिष्ठ पुरोहित पंडित जितेन्द्र द्विवेदी ने कहा कि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में संकष्टी गणेश चतुर्थी, करवा चौथ का व्रत 01 नवम्बर 2023 दिन, बुद्धवार को है। यह महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण निर्जला व्रत है। इस दिन महिलाओं को निर्जला व्रत रखना चाहिए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार करवा चौथ का व्रत ,अखंड ,सौभाग्य के लिए रखा जाता है ।माना जाता है कि इस व्रत को विधिपूर्वक रहने से पति की आयु लम्बी होती है। इस व्रत को निर्जला रखा जाता है, यही कारण है कि करवा चौथ का व्रत अन्य व्रतों की अपेक्षा कठिन होता है ,करवा चौथ व्रत के दिन सुहागिन महिलाएं ,सोलह श्रृंगार करके व्रत रखती हैं , करवा चौथ व्रत के एक दिन पूर्व सुहागिन महिलाएं मेहंदी आदि लगाकर श्रंगार करती हैं और शाम के समय शिव परिवार अर्थात भगवान शिव जी, माता पार्वती जी, भगवान गणेश जी, भगवान कार्तिकेय जी और नंदीश्वर की प्रतिमा चौकी पर रखकर विधि विधान से पूजा के बाद चंद्रोदय पर चंद्रदेव को अर्घ्य देती हैं, अर्घ्य देने के बाद पति द्वारा लोटा से जल पिलाकर व्रत का परायण होता है।
सुहागिनों का सबसे बड़ा त्यौहार है करवा चौथ
करवा चौथ पर्व का हमारे देश में विशेष महत्व है क्योंकि विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए पूरे दिन व्रत रखती हैं और रात को चांद देखकर पति के हाथ से जल पीकर व्रत खोलती हैं। भारतीय समाज में वैसे तो महिलाएं विभिन्न अवसरों पर अनेक व्रत रखती हैं लेकिन पति को परमेश्वर मानने वाली नारी के लिए इन सभी व्रतों में सबसे अहम स्थान रखता है ‘करवा चौथ’ व्रत, जो इस वर्ष 1 नवम्बर को मनाया जा रहा है। पति की दीर्घायु, स्वास्थ्य, सुख-समृद्धि, ऐश्वर्य तथा सौभाग्य के साथ-साथ जीवन के हर क्षेत्र में उसकी सफलता की कामना से सुहागिन महिलाओं द्वारा कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को रखा जाने वाला यह व्रत अन्य सभी व्रतों से कठिन माना जाता है, जो सुहागिनों का सबसे बड़ा व्रत एवं त्यौहार है। महिलाएं अन्न-जल ग्रहण किए बिना अपार श्रद्धा के साथ यह व्रत रखती हैं तथा रात्रि को चन्द्रमा के दर्शन करके अर्ध्य देने के बाद ही व्रत खोलती हैं। यही वजह है कि अखण्ड सुहाग का प्रतीक यह व्रत अन्य सभी व्रतों के मुकाबले काफी कठिन माना जाता है।
कहा जाता है कि इस व्रत के समान सौभाग्यदायक अन्य कोई व्रत नहीं है और सुहागिनें यह व्रत 12-16 वर्ष तक हर साल निरन्तर करती हैं, उसके बाद वे चाहें तो इसका उद्यापन कर सकती हैं अन्यथा आजीवन भी यह व्रत कर सकती हैं। आजकल तो कुछ पुरूष भी पूरे दिन का उपवास रखकर पत्नी के इस कठिन तप में उनके सहभागी बनते हैं। दिनभर उपवास करने के बाद शाम को सुहागिनें करवा की कथा सुनती व कहती हैं तथा चन्द्रोदय के बाद चन्द्रमा को अर्ध्य देकर अपने सुहाग की दीर्घायु की कामना कर प्रण करती हैं कि वे जीवन पर्यन्त अपने पति के प्रति तन, मन, वचन एवं कर्म से समर्पित रहेंगी।
सजना है मुझे सजना के लिए …
भारत में सुहागिन महिलाओं का सबसे बड़ा त्यौहार है ‘करवा चौथ’, जो दाम्पत्य जीवन में एक-दूसरे के प्रति समर्पण का अनूठा पर्व माना जाता है। इस विशेष त्यौहार का सुहागिन महिलाएं सालभर इंतजार करती हैं। हालांकि यह व्रत अन्य सभी व्रतों से कठिन माना जाता है, फिर भी देशभर में हर जाति, हर सम्प्रदाय की महिलाएं अपने पति की दीर्घायु तथा अखंड सौभाग्य की कामना करते हुए खुशी-खुशी यह व्रत रखती हैं और रात को चांद देखकर पति के हाथ से जल पीकर व्रत खोलती हैं। हालांकि समय के साथ इस व्रत को मनाए जाने की परम्पराओं में थोड़ा बदलाव आया है और अब बहुत सी अविवाहित युवतियां भी अच्छे वर की प्राप्ति की कामना से यह व्रत करने लगी हैं।
करवा चौथ के शुभ दिन महिलाओं के चेहरे पर एक अलग ही तेज नजर आता है। इस पर्व का नाम सुनते ही मन में सोलह श्रृंगार किए खूबसूरत नारी की छवि उभर आती है। दरअसल मेंहदी लगे हाथों में रंग-बिरंगी खनकती चूड़ियां, माथे पर आकर्षक बिंदिया, मांग में सिंदूर, सुंदर परिधान और तरह-तरह के आकर्षक गहने पहने अर्थात् सोलह श्रृंगार किए सुहागिन महिलाएं इस दिन नववधू से कम नहीं लगती। दुल्हन के लाल जोड़े की भांति इस दिन भी लाल रंग के परिधान पहनने का चलन बहुत ज्यादा है। वास्तव में करवा चौथ सुहागिन महिलाओं के सजने-संवरने का एक विशेष अवसर है।