Saturday, June 29, 2024
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लेख/विचार

डिजिटल हेल्थ मिशन से किस का होगा फायदा ?

स्वतंत्र दिवस के अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘डिजिटल हेल्थ मिशन’ की घोषणा की थी। सरकारी सूत्रें के अनुसार पूरी तरह टेक्नोलॉजी आधारित इस पद्धति को लागू करने के बाद स्वास्थ्य सेक्टर में क्रांतिकारी परिवर्तन आएगा। हर नागरिक को एक हेल्थ आईडी कार्ड मिलेगा, जिसमें उसकी स्वास्थ्य संबंधी तमाम जानकारियां हांगीं। सरकार का मानना है कि इस योजना के लागू होने के बाद गैरजरूरी दवाओं और नकली मेडिकल बिलों पर लगाम लगेगी।
नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन कहने के लिए तो भारत सरकार की योजना है, जिसे 2018 में नीति आयोग की सलाह पर स्वास्थ्य विभाग के एक पैनल ने तैयार किया था। पर हकीकत यह है कि यह एक तरह से बड़ी दवा कंपनियों, अस्पतालों की चेन चलाने वाले कार्पोरेट घरानों, बड़ी प्राइवेट लैबोरेटरियां और वैक्सीन से जुड़ी कंपनियों के एजेंडै का विस्तार है। केंद्रीय स्वास्थ्य विभाग ने इस मामले में जो ब्लूप्रिंट तैयार किया है, उसे ध्यान से देखें तो बारबार पढ़ने में आता है कि देश के लोगों को इससे बहुत लाभ पहुंचेगा। जबकि हकीकत में कहीं यह नहीं बताया गया है कि लोगों को इससे किस तरह फायदा पहुंचेगा। इस मिशन के अंतर्गत छह डिजिटल सिस्टम तैयार करने की बात की गई है- हेल्थ आईडी, डिजिडाक्टर, हेल्थ फैसिलिटी रजिस्ट्री, पर्सनल हेल्थ रेकार्ड, इन्फार्मसी और टेलिमेडिसिन। अब सोचिए कि यह सब बन जाएगा तो इससे सामान्य आदमी को क्या फायदा होगा और किस तरह होगा?
हकीकत में यह पूरा ब्लूप्रिंट सामान्य आदमी का मेडिकल डेटा एक जगह इकब््ठा करने की बात करता है। इसमें कहीं भी स्वास्थ्य के मुलभूत ढ़ांचे को सुधारने की बात नहीं कही गई है। न ही सस्ती स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने का कोई उल्लेख है, न ही डाक्टरों की संख्या बढ़ाने की बात कही गई है और न ही नर्सिंग स्टाफ की संख्या या गुणवत्ता सुधारने की बात। सही दाम पर जेनेरिक दवा आसानी से लोगों को किस तरह मिलेंगी, इसका भी इसमें कोई उल्लेख नहीं है। अगर में गांवों अस्पताल नहीं खुलेंगे, सरकारी अस्पतालों की स्थिति नहीं सुधरेगी, डाक्टरों की संख्या नहीं बढ़ेगी और स्वास्थ्य सेवाओं को पूरी तरह प्राइवेट सेक्टर के हवाले कर दिया जाएगा तो लोगों को हेल्थ आईडी कार्ड बनवाने से क्या फायदा होगा? क्या कार्ड बन जाने से लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं मिलने लगेंगी? इस समय कोरोना वाइरस ने देश की स्वास्थ्य सेवाओं की पोल वेसे ही खोल दी है। फिर भी सरकार इसमें सुधार करने के बजाय हेल्थ आईडी बनाने में लगी है।
दरअसल, यह आधार कार्ड जैसी ही एक योजना है। जिसमें हर व्यक्ति के पास से उसके स्वास्थ्य से जुड़ी तमाम जानकारी प्राप्त की जाएगी। उसके तमाम हेल्थ पैरामीटर उसमें नोट रहेगें। जिसमें व्यक्ति की ऊंचाई, वजन, रक्त का दबाव, सुगर का स्तर, एलर्जी से होने वाली बीमारियां, उसकी अब तक हुई जांचें, वह जो दवाएं ले रहा होगा, उसकी जानकारियां, किन-किन डाक्टरों को दिखया है, वैक्सीन ली है या नहीं, स्वास्थ्य बीमा है या नहीं, ये तमाम जानकारियां उस कार्ड में रहेंगी। सरकार ये सारी जानकारी लोगों से किस तरह लेगी, इसलिए उसमें ‘डिजिडाक्टर’ और ‘हेल्थ फैसिलिटी रजिस्ट्री’ की बात भी जोड़ दी गई हैै। जिसके अंतर्गत देश के सभी डाक्टरों को डिजिटल रेकार्ड बनाने और स्वास्थ्य सेवाएं यानी कि अस्पताल वगैरह की जानकारी देने की बात शामिल की गई है। सही बात तो यह है, इसका उद्येश्य लोगों को भ्रम में रखना है कि सरकार यह काम तुम्हारे लिए कर रही है।

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आदत से मजबूरः चालबाज चीन की चालाकियाँ

प्राचीन काल से भारत और चीन के बीच सांस्कृतिक और आर्थिक संबंध रहे हैं। परंतु सीमा विवाद का भी अपना एक इतिहास है। जिसके तीन प्रमुख सैन्य संघर्ष हैं- 1962 का भारत चीन युद्ध 1967 का चोल घटना 2017 में डोकलाम क्षेत्र में विवाद और हाल ही में मई महीने के अंत में गए गलवान नदी की घाटी में भारतीय सड़क निर्माण पर चीन को आपत्ति थी जो 25-26 जून को काफी उग्र झड़प हुई और दोनों तरफ के कई सैनिक मारे गए। खास तौर पर भारतीय सेना के 20 जवान शहीद हुए।
इस झड़प के बाद दोनों देशों ने शांति पूर्वक विवाद सुलझाने की कोशिश की परंतु विवादित सीमा क्षेत्रों में चीन तेजी से बड़े पैमाने पर अपने बुनियादी ढांचे को बढ़ा रहा है तो इसी बीच भारत ने भी 12000 अतिरिक्त श्रमिकों व सीमा सड़क संगठन (बी आर ओ) के साथ बुनियादी ढांचा पूरा किया गया गलवान घाटी की घटना के पूर्व संपूर्ण देश में आक्रोश उत्पन्न हुआ जो गुस्सा चीनी उत्पादों के बहिष्कार के रूप में फूटा वहीं सरकार ने भी अपनी कार्यवाही पूरी करते हुए चीनी एप्स पर कड़ा प्रतिबंध लगाया सबसे लोकप्रिय टिक टाॅक पर।
अब अगस्त महीने के अंत तक आते हुए भारत ने भी चीन को उसकी भाषा में समझा दीया उसकी कमर व्यवसायिक रूप में तोड़ी आत्मनिर्भर भारत के तहत व सीमा क्षेत्रों पर भी। चीन हमेशा कमांडर लेवल की बातचीत के दिखावे के दौरान अवैध तरीके से सीमा पर कब्जा करता था और सीमा पर डटे वीरों के साथ उग्र झड़प पर उतर आता था परंतु इस बार भारत की स्पेशल फ्रंटियर फोर्स (एसएफएफ) जिन्होंने 1962 के युद्ध पूर्व चीन को खदेड़ा था। उन्हीं वीरों ने चूशूल घाटी व पैंगोंग सो नदी के दक्षिणी किनारे की तरफ रेकिन पीक को वापस हासिल कर लिया जो चीन ने 1962 की लड़ाई में कब्जा कर लिया था। साथ ही भारतीय सैनिक दमचोक व चुमर पर अपना प्रभुत्व बनाए हुए हैं व नजर लहासा काशगर हाईवे पर भी रखी है जो चीनी सेना का मुख्य रसद की आपूर्ति है। हालांकि हमारे एक वीर कंपनी लीडर नयामा तेंजिन इसी एस एफ एफ के शहीद हो गए उनका पार्थिव शरीर तिरंगे व पहाड़ी शेर (आजाद तिब्बत का ध्वज) में लिपटा हुआ अपने गांव आया। अनेकों तिब्बती व नेपाल के कई लोग हमारी सेना में शामिल हो चुके हैं और डटकर दुश्मन का सामना करते हैं उन्हें स्थानीय क्षेत्रों का ज्ञान भी है।

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प्रदेश सरकार की मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार योजना, युवाओं को बना रही है आत्मनिर्भर

राज्य के शिक्षित बेरोजगार युवकों की बेरोजगारी की समस्या दूर करने और प्रदेश के हुनरमंद व कर्मठ युवाओं को अपने पैरो पर खड़ा करने के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार योजना की शुरूआत की है। इस योजना का मुख्य उदद्देश्य युवाओं को स्वरोजगार उपलब्ध कराना है। इस योजना के तहत सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश के बेरोजगार युवाओं को अपना उद्योग शुरू कर स्वरोजगार स्थापित करने के लिए 25 लाख रू0 तक एवं सेवा क्षेत्र हेतु 10 लाख रू0 तक का ऋण बैंकों के माध्यम से उपलब्ध कराया जाता है। इसमें राज्य सरकार द्वारा 25 प्रतिशत मार्जिन मनी अनुदान लाभार्थी को उपलब्ध कराया जाता है, जो कि उद्योग क्षेत्र हेतु अधिकतम रू0 6.20 लाख तथा सेवा क्षेत्र हेतु रु0 2.50 लाख तक देय होता है। जो उद्यम के दो वर्ष तक सफल संचालन के उपरान्त अनुदान में परिवर्तित हो जाता है।

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आश्रम ने किया ढोंगी बाबाओं का पर्दाफाश

जातिवादी ताकतों के खिलाफ आवाज़ उठाकर न्याय की लड़ाई लड़ने और ढोंगी बाबाओं के आश्रम में चल रहे गलत कामों को उजगार कर उनका असली चेहरा दुनिया के सामने पेश करती है बॉबी देओल की आश्रम सीरीज -डॉo सत्यवान सौरभ
प्रकाश झा की नई वेब सीरीज आश्रम 28 अगस्त को रिलीज हो चुकी है, इस सीरीज के जरिए प्रकाश झा आधुनिक जमाने के बाबाओं और संत-महात्माओं की कहानी लोगों के सामने पेश करने में कामयाब हुए है . इस सीरीज के जरिए बॉबी देओल भी डिजिटल डेब्यू कर गए हैं. वेब सीरीज में असली सच को दिखया गया है कि किस तरह एक बाबा आम लोगों से लेकर राजनीति के गलियारों तक अपना रसूख रखता है.
बाबाओं को किस तरह हमारे देश में भगवान का दर्जा दिया जाता है, इस सीरीज में दिखाया गया है,ढोंगी बाबाओं के द्वारा कैसे लड़कियों और औरतों के साथ होने वाले अत्याचार से लेकर उनकी रहस्यमयी दुनिया को भी उजागर किया जाएगा.

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मौत में अपना अस्तित्व तलाशता मीडिया

आजकल जब टीवी ऑन करते ही देश का लगभग हर चैनल “सुशांत केस में नया खुलासा” या फिर “सबसे बडी कवरेज” नाम के कार्यक्रम दिन भर चलाता है तो किसी शायर के ये शब्द याद आ जाते हैं, “लहू को ही खाकर जिए जा रहे हैं, है खून या कि पानी, पिए जा रहे हैं।”
ऐसा लगता है कि एक फिल्मी कलाकार मरते मरते इन चैनलों को जैसे जीवन दान दे गया। क्योंकि कोई इस कवरेज से देश का नंबर एक चैनल बन जाता है तो कोई नम्बर एक बनने की दौड़ में थोड़ा और आगे बढ़ जाता है। लेकिन क्या खुद को चौथा स्तंभ कहने वाले मीडिया की जिम्मेदारी टीआरपी पर आकर खत्म हो जाती है? देश दुनिया में और भी बहुत कुछ हो रहा है क्या उसे देश के सामने लाना उनकी जिम्मेदारी नहीं है? खास तौर पर तब जब वर्तमान समय पूरी दुनिया के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण है। एक ओर लगभग आठ महीनों से कोरोना नामक महामारी ने सम्पूर्ण विश्व में अपने पैर पसार रखे हैं तो दूसरी ओर वैज्ञानिकों के तमाम प्रयासों के बावजूद अभी तक इसके इलाज की खोज अभी जारी है।

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जानिए कौन कहलाते हैं पितृ, महाभारत में छुपा है श्राद्ध का पौराणिक रहस्य

इस साल पितृ पक्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से से शुरू हो गया है और आश्विन के कृष्ण अमावस्या तक रहेगा। 17 सितंबर 2020 को पितृ विसर्जन यानी सर्वपितृ अमावस्या होगा। हिन्दू रीति- रिवाजों में पितृपक्ष का बड़ा महत्त्व है। इन दिनों लोग अपने पितरों को प्रसन्न करने के लिए श्राद्ध करते हैं। श्राद्ध करने से पितृ तृप्त होते हैं। जब पितर तृप्त होते हैं, तो वे अपने जनों को आशीर्वाद देते हैं।
कौन कहलाते हैं पितृ?
जिस किसी के परिजन चाहे वो विवाहित हों या अविवाहित, बच्चा हो या बुजुर्ग, स्त्री हो या पुरुष उनकी मृत्यु हो चुकी है, उन्हें पितृ कहा जाता है। पितृपक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण किया जाता है। पितरों के प्रसन्न होने पर घर में सुख- शांति आती है।
जब याद ना हो श्राद्ध की तिथि
पितृपक्ष में पूर्वजों का स्मरण और उनकी पूजा करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। जिस तिथि पर हमारे परिजनों की मृत्यु होती है, उसे श्राद्ध की तिथि कहते हैं। बहुत से लोगों को अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि याद नहीं रहती, ऐसी स्थिति में शास्त्रों के अनुसार, आश्विन अमावस्या को तर्पण किया जा सकता है। इसलिए इस अमावस्या को सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है।

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क्या कैग की संवैधानिकता बनी रहेगी?

भारत के चौदहवें कॉम्प्ट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल (कैग) के रूप में गिरीश चंद्र मूर्मु की नियुक्ति के कारण ‘कैग’ की कार्यप्रणाली पर एक बार फिर चर्चा हो रही है। 1985 के बैच के गुजरात कैडर के आईएएस अधिकारी (अब सेवानिवृत्त) मूर्मु प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के पसंद के अधिकारी होने की वजह से उनकी ‘कैग’ के रूप में नियुक्ति से इस संवैधानिक संस्था की तटस्थता पर सवाल उठाए जा रहे हैं। मूर्मु की नियुक्ति वरिष्ठता और योग्यता के आधार पर होने के बारे में दलीलें दी जा रही हैं। इंडियन ऑडिट एंड एकाउंट सर्विस के सात अधिकारियों की वरिष्ठता को किनारे कर के इन्हें इस पद के लिए लाया गया है। दिल्ली में गांधीजी और डा0 बाबासाहेब अंबेडकर की प्रतिमा की वंदना कर के यह नई जिम्मेदारी संभालने वाले मूर्मु उड़ीसा के संथाल आदिवासी परिवार से आते हैं। 21 नवंबर, 1959 में जन्मे मूम्रु उड़ीसा की प्रतिष्ठित उत्कल यूनीर्सिटी से राजनीति शास्त्र से एमए हैं। उसके बाद यूके की बर्मिघंम यूनिवार्सिटी से एमबीए किया है। 1985 से गुजरात में आईएएस अधिकारी के रूप में कार्यरत मूर्मु कैग बनने के पूर्व गुजरात के मुख्यमंत्री कार्यालय में सचिव, भारत सरकार के वित्त मंत्रलय में सचिव और जम्मू-कश्मीर के प्रथम उपराज्यपाल के रूप में कार्य कर चुके हैं। उच्च शिक्षा और लंबे प्रशासनिक कार्य का अनुभव रखने वाले मूर्मु की सत्ता पक्ष से निकटता ‘कैग’ के कामकाज के दौरान उन्हें विवाद में ला सकती है।
सरकारी धन का हिसाब-किताब (ऑडिट) करने वाली संवैधानिक संस्था ‘कैग’ सरकारी पैसे का पाई-पाई का हिसाब रखती है। केंद्र और राज्य सरकारों, सार्वजनिक संस्थाओं और अन्य सरकारी संस्थाओं के आर्थिक मामलों की देखरेख, निरीक्षण और जांच की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाती है। पूरे देश में 133 प्रादेशिक कार्यालयों में इससे 58000 अधिकरी-कर्मचारीं जुड़े हैं। ‘कैग’ की स्स्थापना अंग्रेजों के समय हुई थी। 1857 के प्रथम स्वतंत्रमा संग्राम के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी से अंग्रेज सरकार ने हिसाब-किताब संभाला तब से आज तक ‘कैग’ हीी सरकारी पैसों का आडिट यानी खर्च का हिसाब-किताब कर रही है।

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साइबर क्राइमः अपराधी मस्त पुलिस पस्त

अभी जल्दी ही एक समाचार आया था कि टिकटॉक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब का उपयोग करने वाले कुल 23,50,00,000 लोगों का डाटा लीक हो गया है। इन लोगों की तमाम निजी जानकारियां चोरी हो गई हैं? इनके नाम, इनके एकाउंट में दिया यूजर नाम, इनकी प्रोफाइल फोटो, इनके एकाउंट की जानकारी, उम्र और पता तथा ये दिन में कहां-कहां जाते हैं और वहां कितनी देर तक रुकते हैं, ये सारी जानकारियां किसी अन्य के पास पहुंच गई हैं।
इतना जानने के आपके मन में यह बात जरूर आई होगी कि भले ये डाटा चोरी हो गया है, इससे हमारे ऊपर क्या फर्क्र पड़ने वाला है। भाइयों यह हम लोगों का भ्रम है। जबकि इन्हीं जानकारियों के आधार पर जिन लोगों को हम ं में रुचि होगी, वे हम पूरे दिन कहां-कहां जाते हैं और क्या-क्या करते रहते हैं, यह यब जाान लेेंगे तो क्या हमारे लिए खतरा नहीं है? हमारे सभी फालोअर्स का नाम जान लेंगे तो क्या हमें कोई फर्क नहीं पड़ेगा? हम कौन-कौन सी पोस्ट लाइक करते हैं, शेयर करते हैं और उसमें हम क्या हिस्सेदारी करते हैं, ये जानकारियां किसी अंजान आदमी की जानकारी में आ जाएं तो क्या खतरा नहीं है? ये सारी जानकारियां हाथ में आने के बाद कोई भी आदमी हमारे बारे में बहुत कुछ जान सकता है। बाद में डिजिटल प्लेटफार्म पर हम हैं, यह दिखावा कर सकता है। हम कह रहे हैं, यह स्थापित कर के हमारे किसी भी फालोवर से कुछ भी कह सकता है। हमें इसका पता भी नहीं चल सकेगा। सही बात तो यह है कि हमारी कोई भी निली जानकारी कोई तीसरा आदमी जान ले, यह हमारे लिए खतरनाक तो है ही। इंस्टाग्राम, यूट्यूब और टिकटॉक का डाटा चोरी कर के किसी ने डार्कवेब कहे जाने वाले अंधेरे खांचे में डाल दिया है। वहां से कोई भी आदमी ये जानकारियां चुरा सकता है।
इसका एक छोटा सा उदाहरण देता हूं। एक दिन फेसबुक पर किसी ने मैंसेंजर की स्क्रीनशॉट के साथ पोस्ट डाली थी कि उनके दोस्त के नाम पर कोई उनसे पैसे मांग रहा है। आईडी उनके दोस्त की ही थी। पता चला कि वह फर्जी आईडी थी, जो हैक कर ली गई थी। यही नहीं मैसेंजर पर भी लोग महिलाओं को अश्लील मैसेज भेज कर परेशान तो करते ही हैं, फोटो के साथ छेड़छाड़ करके ब्लैकमेल भी करते हैं। इसके अलावा आर्थिक ठगी के मामले तो लगभग रोज ही अखबारों में आते रहते हैं। इस तरह के ये अपराध डाटा चोरी कर के ही हो रहे हैं। यही सब सायबर अपराध है। अब इस तरह कोई हमारा डाटा चोरी कर के कुछ गलत काम करता है तो हम अपनी शिकायत ले कर पुलिस के पास जाएंगे और उसके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा कर उसे पकड़ा देंगे। यही विचार लगभग सभी के मन में आता है। यह स्वाभाविक भी है। देश के किसी भी नागरिक के साथ अगर इंटरनेट द्वारा किसी भी तरह की ठगी होती है या कुछ और गड़बड़ होती है तो उसे पुलिस की सायबर क्राइम विभाग में तुरंत शिकायत करनी चाहिए।
जबकि हकीकत यह है कि पुलिस की सायबर क्राइम विभाग के पास काम का इतना बोझ है कि हमारे शिकायत करने के बाद कब हमारे केस की जांच शुरू होगी कहा, नहीं जा सकता। जांच पूरी होगी भी या नहीं, यह भी नहीं कहा जा सकता। अदालत में चार्जशीट दाखिल होगी या नहीं, यह भी निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता।

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कमला हेरिसः जिन्होंने उड़ा दी है ट्रम्प की नींद

अमेरिका के सेन फ्रांसिस्को के काउंटी अल्मेडा की अदालत के कटघरे में एक 14 साल की लड़की खड़ी थी। उसके फेस पर गहरा मेकअप था। अदालत की ज्यूरी सहित सभी उसे विचित्र नजरों से देख रहे थे। तभी उस लड़की के वकील के रूप में डिस्ट्रिक्ट एटार्नी कमला हेरिस ने ज्यूरी की ओर देख कर कहा कि ‘कटघरे में खड़ी यह लड़की गैंगरेप का शिकार बनी है। मैं जानती हूं कि आप लोग नहीं चाहते कि यह लड़की आप लोगों के बच्चों के साथ खेले। परंतु इस देश का कानून मात्र गोरे लोगों को बचाने के लिए नहीं बना है। कटघरे में खड़ी यह लड़की अभी मासूम है और इसे उन लोगों से सुरक्षा चाहिए, जो इसे जंगली जानवारों की तरह नोच खाने की ताक में बैठे हैं।’’
असिस्टेंट एटार्नी के रूप में अदालत में जब कमला हेरिस कटघरे में खड़ी लड़की की ओर अंगुली से इशारा कर के ज्यूरी की आंख से आंख मिला कर बात कर रही थीं, तब उनकी कही एक-एक बात ज्यूरी के दिल में उतरती जा रही थी। इस केस को कमला हेरिस जीत गई थीं। लड़की के साथ रेप करने वाले अपराधी ठहराए गए थे। परंतु अदालत से निकलने के बाद वह लड़की गायब हो गई थी। डिस्ट्रिक्ट एटार्नी कमला हेरिस और पुलिस ने उस लड़की की बहुत खोज की, पर उसका कहीं पता नहीं चला। वकील के रूप में कैरियर बना चुकी कमला हेरिस सदैव दमन का शिकार बनी युवतियों के लिए लड़ती रहीं। वकील के रूप में उनका एटेंशन हमेशा टीनएज प्रोटक्शन पर रहा।

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परीक्षा रोकवाने निकले नेता बिहार चुनाव पर चुप क्यों

पूरे देश के विपक्षी नेताओं को एकाएक परीक्षा देने वाले विद्यार्थियों पर दया उमड़ आई है और जेईई तथा नीट की परीक्षा टालने की मांग कर रहे हैं। सितंबर महीने में होने वाली इस परीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट ने ग्रीन सिग्नल दे दिया है। 85 प्रतिशत विद्यार्थियों ने परीक्षा देने के लिए एडमिट कार्ड भी डाऊनलोड कर लिया है। परंतु विपक्ष के नेता इस मुद्दे पर फिर सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कर रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि यही विपक्षी नेता बिहार में नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव के मामले में चुप हैं और आराम से चुनाव की तैयारियोें में लगे हुए हैं।
राजनीति हमेशा स्वार्थी होती है, इसका सुबूत जेईई-नीट की परीक्षा और बिहार के चुनाव से मिल रहा है। बिहार चुनाव समय से ही होंगे, इसकी घोषण हो चुकी है। इसलिए अब पूरा अक्टूबर-नवंबर बिहार चुनाव की कार्रवाई में व्यस्त रहेगा। रैलियां, उम्म्ीदवारों का चुनाव, उम्मीदवारों द्वारा अपनी उम्मीदवारी का फार्म भरना, चुनाव प्रचार और चुनावी रैलियां और उसके बाद चुनाव। मतगणना और विजय जुलूस। सवाल यह है कि इस चुनाव प्रक्रिया में किसी राजनीतिक दल को कोरोना का भय नहीं लग रहा। बिहार की जनता को चुनाव की वजह से कोरोना हो सकता, यह आरोप लगा कर कोई राजनीतिक दल सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने नहीं जा रहा है। उलटे राजनीतिक पार्टियां बिहार में अपने चुनावी दांवपेंच लगाने में जुटी हैं। यह एक कड़वा सच राजनीतिक पार्टियों का है।
बिहार में चुनाव होना है, यह तय हो चुका है। इसलिए विपक्ष अपना तालमेल बैठाने में लगा है। बिहार में एनडीए की सरकार है, जिसमें जेडीयू, भाजपा तथा एलजेपी शामिल है। चुनाव की घोषणा के पहले एललेपी के चिराग पासवान सीटों के मुद्दे पर मीडिया के सामने आ चुके हैं और एक बार वह समर्थन वापस लेने की धमकी भी दे चुके हैेैं। परंतु सूत्रें से मिली जानकारी के अनुसार अब सत्तापक्ष में सीटों के बंटवारे को लेकर सहमति बन चुकी है। भाजपा अध्यक्ष नड्डा की ओर से बयान आया है कि बिहार चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। जो जानकारी मिली है, उसके अनुसार सत्ताधारी पार्टी ने जो समझौता किया है, उसके हिसाब से जनतादल यूनाइटेड (जेडीयू) 110 सीट पर, भाजपा 100 सीट पर और लोकजनशक्ति पार्टी (एलजेपी) 33 सीट पर अपने उम्मीदवार उतारेगी। यह समझौता जल्दी ही मीडिया के समक्ष घोषित किया जाएगा। इस फार्मूले में 2-4 सीटों की अदला-बदली हो सकती है। परंतु लगभग इसी फार्मूले के अनुसार एनडीए चुनाव में उम्मीदार उतारेगी। दूसरी तरफ बिहार में विपक्ष के महागठबंधन में सीटों के समझौते को लेकर भारी खींचतान मची है। सीटों के बंटवारे में अन्याय होने की वजह से ही हम पार्टी के जीतनराम माझी ने महागठबंधन का साथ छोड़ दिया है। खबर आ रही है कि जीतनराम माझी जेडीयू के साथ गठबंधन कर सकते हैं, पर अभी यह बात तय नहीं है। क्योंकि अभी जीतनराम माझी की तरफ से कुछ खुलासा नहीं किया गया है। वह अकेले चुनाव लड़ेंगे या किसकी तरफ जाएंगे अभी कुछ निश्चित नहीं है। जीतनराम माझी के जाने के बाद महागठबंधन में सीटों के बंटवारे को लेकर अब कांग्रेस और अरजेडी के बीच खींचतान चल रही है। कांग्रेस पिछली बार की अपेक्षा इस बार दोगुनी सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है। 2015 में जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस ने साथ मिल कर चुनाव लड़ा था। तब जेडीयू, आरजेडी 101-101 सीटों पर और कांग्रेस 42 सीटों पर चुनाव में उतरी थी। अब 2020 में महागठबंधन से जेडीयू बाहर हो चुकी है। इसलिए कांग्रेस 80 सीटों की मांग कर रही है। दूसरी तरफ महागठबंधन की मुख्य पार्टी लालूप्रसाद यादव की आरजेडी 160 से कम सीटों पर चुनाव लड़ने के मूड में नहीं है। ऐसे में महागठबंधन के अन्य साथियों को कितनी सीटें मिलेंगी, यह एक चर्चा का विषय है। बिहार विधानसभा की 243 सीटों में से 240 सीटों पर आरजेडी और कांग्रेस ही चुनाव लड़ लेंगी तो बाकी पार्टियों का क्या होगा? यह एक बड़ा सवाल महागठबंधन का है।

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