Tuesday, July 2, 2024
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लेख/विचार

साइबर क्राइमः अपराधी मस्त पुलिस पस्त

अभी जल्दी ही एक समाचार आया था कि टिकटॉक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब का उपयोग करने वाले कुल 23,50,00,000 लोगों का डाटा लीक हो गया है। इन लोगों की तमाम निजी जानकारियां चोरी हो गई हैं? इनके नाम, इनके एकाउंट में दिया यूजर नाम, इनकी प्रोफाइल फोटो, इनके एकाउंट की जानकारी, उम्र और पता तथा ये दिन में कहां-कहां जाते हैं और वहां कितनी देर तक रुकते हैं, ये सारी जानकारियां किसी अन्य के पास पहुंच गई हैं।
इतना जानने के आपके मन में यह बात जरूर आई होगी कि भले ये डाटा चोरी हो गया है, इससे हमारे ऊपर क्या फर्क्र पड़ने वाला है। भाइयों यह हम लोगों का भ्रम है। जबकि इन्हीं जानकारियों के आधार पर जिन लोगों को हम ं में रुचि होगी, वे हम पूरे दिन कहां-कहां जाते हैं और क्या-क्या करते रहते हैं, यह यब जाान लेेंगे तो क्या हमारे लिए खतरा नहीं है? हमारे सभी फालोअर्स का नाम जान लेंगे तो क्या हमें कोई फर्क नहीं पड़ेगा? हम कौन-कौन सी पोस्ट लाइक करते हैं, शेयर करते हैं और उसमें हम क्या हिस्सेदारी करते हैं, ये जानकारियां किसी अंजान आदमी की जानकारी में आ जाएं तो क्या खतरा नहीं है? ये सारी जानकारियां हाथ में आने के बाद कोई भी आदमी हमारे बारे में बहुत कुछ जान सकता है। बाद में डिजिटल प्लेटफार्म पर हम हैं, यह दिखावा कर सकता है। हम कह रहे हैं, यह स्थापित कर के हमारे किसी भी फालोवर से कुछ भी कह सकता है। हमें इसका पता भी नहीं चल सकेगा। सही बात तो यह है कि हमारी कोई भी निली जानकारी कोई तीसरा आदमी जान ले, यह हमारे लिए खतरनाक तो है ही। इंस्टाग्राम, यूट्यूब और टिकटॉक का डाटा चोरी कर के किसी ने डार्कवेब कहे जाने वाले अंधेरे खांचे में डाल दिया है। वहां से कोई भी आदमी ये जानकारियां चुरा सकता है।
इसका एक छोटा सा उदाहरण देता हूं। एक दिन फेसबुक पर किसी ने मैंसेंजर की स्क्रीनशॉट के साथ पोस्ट डाली थी कि उनके दोस्त के नाम पर कोई उनसे पैसे मांग रहा है। आईडी उनके दोस्त की ही थी। पता चला कि वह फर्जी आईडी थी, जो हैक कर ली गई थी। यही नहीं मैसेंजर पर भी लोग महिलाओं को अश्लील मैसेज भेज कर परेशान तो करते ही हैं, फोटो के साथ छेड़छाड़ करके ब्लैकमेल भी करते हैं। इसके अलावा आर्थिक ठगी के मामले तो लगभग रोज ही अखबारों में आते रहते हैं। इस तरह के ये अपराध डाटा चोरी कर के ही हो रहे हैं। यही सब सायबर अपराध है। अब इस तरह कोई हमारा डाटा चोरी कर के कुछ गलत काम करता है तो हम अपनी शिकायत ले कर पुलिस के पास जाएंगे और उसके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा कर उसे पकड़ा देंगे। यही विचार लगभग सभी के मन में आता है। यह स्वाभाविक भी है। देश के किसी भी नागरिक के साथ अगर इंटरनेट द्वारा किसी भी तरह की ठगी होती है या कुछ और गड़बड़ होती है तो उसे पुलिस की सायबर क्राइम विभाग में तुरंत शिकायत करनी चाहिए।
जबकि हकीकत यह है कि पुलिस की सायबर क्राइम विभाग के पास काम का इतना बोझ है कि हमारे शिकायत करने के बाद कब हमारे केस की जांच शुरू होगी कहा, नहीं जा सकता। जांच पूरी होगी भी या नहीं, यह भी नहीं कहा जा सकता। अदालत में चार्जशीट दाखिल होगी या नहीं, यह भी निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता।

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कमला हेरिसः जिन्होंने उड़ा दी है ट्रम्प की नींद

अमेरिका के सेन फ्रांसिस्को के काउंटी अल्मेडा की अदालत के कटघरे में एक 14 साल की लड़की खड़ी थी। उसके फेस पर गहरा मेकअप था। अदालत की ज्यूरी सहित सभी उसे विचित्र नजरों से देख रहे थे। तभी उस लड़की के वकील के रूप में डिस्ट्रिक्ट एटार्नी कमला हेरिस ने ज्यूरी की ओर देख कर कहा कि ‘कटघरे में खड़ी यह लड़की गैंगरेप का शिकार बनी है। मैं जानती हूं कि आप लोग नहीं चाहते कि यह लड़की आप लोगों के बच्चों के साथ खेले। परंतु इस देश का कानून मात्र गोरे लोगों को बचाने के लिए नहीं बना है। कटघरे में खड़ी यह लड़की अभी मासूम है और इसे उन लोगों से सुरक्षा चाहिए, जो इसे जंगली जानवारों की तरह नोच खाने की ताक में बैठे हैं।’’
असिस्टेंट एटार्नी के रूप में अदालत में जब कमला हेरिस कटघरे में खड़ी लड़की की ओर अंगुली से इशारा कर के ज्यूरी की आंख से आंख मिला कर बात कर रही थीं, तब उनकी कही एक-एक बात ज्यूरी के दिल में उतरती जा रही थी। इस केस को कमला हेरिस जीत गई थीं। लड़की के साथ रेप करने वाले अपराधी ठहराए गए थे। परंतु अदालत से निकलने के बाद वह लड़की गायब हो गई थी। डिस्ट्रिक्ट एटार्नी कमला हेरिस और पुलिस ने उस लड़की की बहुत खोज की, पर उसका कहीं पता नहीं चला। वकील के रूप में कैरियर बना चुकी कमला हेरिस सदैव दमन का शिकार बनी युवतियों के लिए लड़ती रहीं। वकील के रूप में उनका एटेंशन हमेशा टीनएज प्रोटक्शन पर रहा।

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परीक्षा रोकवाने निकले नेता बिहार चुनाव पर चुप क्यों

पूरे देश के विपक्षी नेताओं को एकाएक परीक्षा देने वाले विद्यार्थियों पर दया उमड़ आई है और जेईई तथा नीट की परीक्षा टालने की मांग कर रहे हैं। सितंबर महीने में होने वाली इस परीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट ने ग्रीन सिग्नल दे दिया है। 85 प्रतिशत विद्यार्थियों ने परीक्षा देने के लिए एडमिट कार्ड भी डाऊनलोड कर लिया है। परंतु विपक्ष के नेता इस मुद्दे पर फिर सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कर रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि यही विपक्षी नेता बिहार में नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव के मामले में चुप हैं और आराम से चुनाव की तैयारियोें में लगे हुए हैं।
राजनीति हमेशा स्वार्थी होती है, इसका सुबूत जेईई-नीट की परीक्षा और बिहार के चुनाव से मिल रहा है। बिहार चुनाव समय से ही होंगे, इसकी घोषण हो चुकी है। इसलिए अब पूरा अक्टूबर-नवंबर बिहार चुनाव की कार्रवाई में व्यस्त रहेगा। रैलियां, उम्म्ीदवारों का चुनाव, उम्मीदवारों द्वारा अपनी उम्मीदवारी का फार्म भरना, चुनाव प्रचार और चुनावी रैलियां और उसके बाद चुनाव। मतगणना और विजय जुलूस। सवाल यह है कि इस चुनाव प्रक्रिया में किसी राजनीतिक दल को कोरोना का भय नहीं लग रहा। बिहार की जनता को चुनाव की वजह से कोरोना हो सकता, यह आरोप लगा कर कोई राजनीतिक दल सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने नहीं जा रहा है। उलटे राजनीतिक पार्टियां बिहार में अपने चुनावी दांवपेंच लगाने में जुटी हैं। यह एक कड़वा सच राजनीतिक पार्टियों का है।
बिहार में चुनाव होना है, यह तय हो चुका है। इसलिए विपक्ष अपना तालमेल बैठाने में लगा है। बिहार में एनडीए की सरकार है, जिसमें जेडीयू, भाजपा तथा एलजेपी शामिल है। चुनाव की घोषणा के पहले एललेपी के चिराग पासवान सीटों के मुद्दे पर मीडिया के सामने आ चुके हैं और एक बार वह समर्थन वापस लेने की धमकी भी दे चुके हैेैं। परंतु सूत्रें से मिली जानकारी के अनुसार अब सत्तापक्ष में सीटों के बंटवारे को लेकर सहमति बन चुकी है। भाजपा अध्यक्ष नड्डा की ओर से बयान आया है कि बिहार चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। जो जानकारी मिली है, उसके अनुसार सत्ताधारी पार्टी ने जो समझौता किया है, उसके हिसाब से जनतादल यूनाइटेड (जेडीयू) 110 सीट पर, भाजपा 100 सीट पर और लोकजनशक्ति पार्टी (एलजेपी) 33 सीट पर अपने उम्मीदवार उतारेगी। यह समझौता जल्दी ही मीडिया के समक्ष घोषित किया जाएगा। इस फार्मूले में 2-4 सीटों की अदला-बदली हो सकती है। परंतु लगभग इसी फार्मूले के अनुसार एनडीए चुनाव में उम्मीदार उतारेगी। दूसरी तरफ बिहार में विपक्ष के महागठबंधन में सीटों के समझौते को लेकर भारी खींचतान मची है। सीटों के बंटवारे में अन्याय होने की वजह से ही हम पार्टी के जीतनराम माझी ने महागठबंधन का साथ छोड़ दिया है। खबर आ रही है कि जीतनराम माझी जेडीयू के साथ गठबंधन कर सकते हैं, पर अभी यह बात तय नहीं है। क्योंकि अभी जीतनराम माझी की तरफ से कुछ खुलासा नहीं किया गया है। वह अकेले चुनाव लड़ेंगे या किसकी तरफ जाएंगे अभी कुछ निश्चित नहीं है। जीतनराम माझी के जाने के बाद महागठबंधन में सीटों के बंटवारे को लेकर अब कांग्रेस और अरजेडी के बीच खींचतान चल रही है। कांग्रेस पिछली बार की अपेक्षा इस बार दोगुनी सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है। 2015 में जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस ने साथ मिल कर चुनाव लड़ा था। तब जेडीयू, आरजेडी 101-101 सीटों पर और कांग्रेस 42 सीटों पर चुनाव में उतरी थी। अब 2020 में महागठबंधन से जेडीयू बाहर हो चुकी है। इसलिए कांग्रेस 80 सीटों की मांग कर रही है। दूसरी तरफ महागठबंधन की मुख्य पार्टी लालूप्रसाद यादव की आरजेडी 160 से कम सीटों पर चुनाव लड़ने के मूड में नहीं है। ऐसे में महागठबंधन के अन्य साथियों को कितनी सीटें मिलेंगी, यह एक चर्चा का विषय है। बिहार विधानसभा की 243 सीटों में से 240 सीटों पर आरजेडी और कांग्रेस ही चुनाव लड़ लेंगी तो बाकी पार्टियों का क्या होगा? यह एक बड़ा सवाल महागठबंधन का है।

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धन संचय की आदत

धन का हम सभी के जीवन में बहुत महत्त्व है। धनाभाव में किसी का जीवन सुचारू रूप से नहीं चल पाता और इसके बिना व्यक्ति को आज के समाज में पर्याप्त मान प्रतिष्ठा भी नहीं मिलता। यहां मैं यह भी ध्यान देने योग्य है कि किसी भी व्यक्ति को सामाजिक मान प्रतिष्ठा सिर्फ धन से ही नहीं मिलता अपितु इसके लिए श्रेष्ठ गुणों का होना भी आवश्यक होता है पर इन अच्छे गुणों के बावजूद व्यक्ति का धनी होना भी बहुत आवश्यक होता है।
किसी किसी को धन विरासत में मिला होता है पर सभी लोग पैदाइशी अमीर नहीं होते बल्कि उसके लिए धन का संचय करना पड़ता है। दुनिया में अधिकतर लोग धन संचय और मेहनत के अच्छी आदतों के कारण ही धनवान बने हैं। ये धन संचय की आदत नहीं व्यक्ति में अचानक विकसित नहीं हो सकता अपितु इसके लिए बहुत कोशिश करनी पड़ती है और बहुत सारे लोग तो चाह कर भी इस अच्छी आदत को अपनाने में असफल रहते हैं। ऐसे व्यक्ति मुश्किल वक्त में धन संचय ना करने और अपनी फिजूलखर्ची पर अफ़सोस करते रहते हैं।

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पीएम-केयर्स फंड बिना ऑडिट का गुल्लक है

मगर विपक्ष का कहना है कि सार्वजनिक प्राधिकरण के रूप में पीएम-केयर्स की घोषणा पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए एक झटका है। मगर कम से कम आरटीआई अनुरोध को इस बारे वैध रूप में देखा जाना चाहिए। जो यह समझना चाहते हैं कि धन कैसे प्राप्त किया जा रहा है और उन्हें अब तक कैसे वितरित किया जा रहा है, इसके अलावा, सरकार को अधिक जवाबदेह दान को प्रचारित करने की आवश्यकता भी है, ताकि उनके कार्यों को सकारात्मक रूप से लिया जा सके। – डॉo सत्यवान सौरभ
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहा है कि भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक से पीएम-केयर्स फंड का ऑडिट कराने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यह एक सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट होने के नाते, “भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक द्वारा प्रधानमंत्री के नागरिक सहायता और आपातकालीन स्थिति फंड (पीएम-केयर फंड) में राहत के ऑडिट के लिए कोई अवसर नहीं है”। इसने पीएम केयर्स फंड से राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष को धनराशि स्थानांतरित करने से भी इनकार कर दिया।
पीएम कार्स फंड एक सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट है जिसे 2020 में सीओवीआईडी -19 महामारी द्वारा उत्पन्न किसी भी प्रकार की आपातकालीन स्थिति से निपटने के प्राथमिक उद्देश्य के साथ स्थापित किया गया है। 28 मार्च 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कोरोनोवायरस के बाद प्रधानमंत्री के साथ इसके अध्यक्ष और वरिष्ठ कैबिनेट सदस्यों के रूप में ट्रस्टियों के रूप में शुरू किया गया। यह किसी भी प्रकार की आपात या संकट की स्थिति से निपटने के लिए एक समर्पित राष्ट्रीय कोष है।

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गांधी परिवार के अलावा कुछ और सोंच ही नहीं सकते कांग्रेसी

राजनीति करना सामान्य लोगों के वश की बात नहीं है। इसमें मोटी चमड़ी वाले लोग ही टिक सकते हैं। सीधे-सीधे कहें तो जिन्हें मान-अपमान की न पड़ी हो, ऐसे ही लोग राजनीति में पैर जमा सकते हैं। राजनीति में अपनी इच्छा और संवेदनाओं का गला घांट कर चलना पड़ता है। क्योंकि राजनीति में सामने वाले की अपेक्षा साथ वाला पहले चोट पहुंचाता है। इसलिए अगर आप सचेत नहीं रहते तो आपके साथ वाला ही आपको पीछे धकेल देगा। जिसकी कसक आपको पूरी जिंदगी रहेगी।
कोग्रेस की भी हालत इस समय कूछ ऐसी ही है। कांग्रेस में इस समय जो घमासान चल रहा है, उसके पीछे कांग्रेस के ही वफादार माने जाने वाले 23 लोगों ने कांग्रेस का नेतृत्व बदलने के लिए एक पत्र जो लिख दिया। वह पत्र अब कांग्रेस में लेटरबम के रूप में साबित हुआ है। जिसकी वजह से कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष को कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक बुलानी पड़ी। पर इसका कोई फायदा नहीं हुआ। क्योेंकि हुआ वही, जो पहले से तय था या जो पहले से था। यानी कि कोंग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी थीं और आगे भी वही रहेंगी। कांग्रेस की जो रीति-नीति वर्षों से चली आ रही है, उसे जानने वालों को पहले से ही पता था कि जैसा पहले से था, वैसा ही आगे भी रहेगा। कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके परिवार को कोई दिक्कत नहीं होने वाली है, पर दिक्कत गांधी परिवार की नेतागिरी पर पड़ने वाली यह बात निश्चित है।
कांग्रेस में अध्यक्ष बदलने का घमासान लेटरबम से हुआ, जिसे 23 नेताओं ने हस्ताखर के साथ लिखा था। इन नेताओं में गुलामनबी आजाद, आनंद शर्मा, कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी, शशि थरूर, विवेक तन्खा, मुकुल वासनिक, जतिन पसाद, भूपेन्द्र सिंह हुड्डा, एम वीरप्पामोइली, पृथ्वीराज चैहाण, पी जे कुरियन, अजय सिंह, रेणुका चैधरी, मिलिंद देवड़ा, राज बब्बर, अरविंद सिंह लवली, कौल सिंह ठाकुर, अखिलेश प्रसाद सिंह, कुलदीप शर्मा, योगानंद शास्त्री, संदीप दीक्षित आदि के शामिल होने की बाात कही जा रही है। सोनिया गांधी को लिखे इस पत्र में उल्लेख किया गया है कि कांग्रेस जैसी पार्टी को पूर्णकालीन और प्रभावी नेतृत्व की जरूरत है। पिछले काफी समय से कांग्रेस पार्टी कार्यकारी अध्यक्ष से चल रही है, जिससे पार्टी का मनोबल टूट रहा है, साथ ही साथ इस पत्र में यह भी कहा गया है कि पार्टी इस समय देश में वजूद खोती जा रही है। इसलिए पार्टी के नेताओं को आत्मवलोकन करने की जरूरत है। इस समय पार्टी की कमान सीमित लोगों के हाथों में है। इसका विकेन्द्रीकरण करने की जरूरत है। इसके अलावा राज्य में पार्टी को मजबूत करने के साथ हर जगह संगठन को मजबूत करने के लिए चुनाव की मांग की गई है।

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आखिर कलम उठ ही गई…

कोरोना के बारे में लिखना छोड़ दिया, क्यों छोड़ा मार्च, अप्रैल और मई की भयानक तस्वीरें एक गरीब, मजदूर और किसान परिवार के लिए सचमुच बहुत डरावना था।
मीडिया वाले भी दिनभर भ्रामक खबर चलाकर जान सांसत में डाल दिया, सच में हालात बेहद गंभीर हो गया।
कलम को बन्द करके जेब में रख लिया कोरोना के विश्लेषात्मक करके क्या फायदा जब सरकार ने करोड़ों लोगों सड़क पर मरने के लिये छोड़ दिया।
एक विशेष लेख लिखा, एक समाचार पत्र के एडिटर बोले ऐसी लेख का कंटेंट नहीं चलता है, आप साहित्यकार हो आपके लिये प्राकृतिक इंतजार कर रही है।
बात यही पर ही खत्म हो गई, सरकार ने आपको पहले ही आत्मनिर्भर बनने का बेहतरीन तरीका बता दिया जिससे आप भी सुरक्षित और सरकार भी चैन से सो रही हैं।
कुछ लोगो ने बताया कि लोन के लिये कंपनी वाले रोज फोन पर धमकी दे रहे हैं।
फिलहाल टैक्स को समय से भरते रहो
जीएसटी लिये छोटे व्यापरियों की हालत बहुत बुरा हो गया है।
महंगी कारो में सब्जी बेची जा रही है, कोरोना के नाम पर प्राइवेट हॉस्पिटल में महंगी लिस्ट बनाकर लूटा जा रहा है।
ऐसा लगता जैसे जिंदगी ठहर सी गई हो।
आम लोगों का जीना दुश्वार हो गया है, उत्तर प्रदेश सरकार के 2 कैबिनेट मंत्रियों की अब तक कोरोना से जान चली गई है, कानपुर की कमल रानी वरुण और भारत के जाने- माने क्रिकेटर चेतन चौहान जिनका बहुत बड़ा नाम महान हस्ती में शामिल था। उनको कौन नहीं जनता सुनील गवास्कर के साथ खेलते हुए देश ने देखा होगा।
कल बहुत दुख हुआ जब समाजवादी पार्टी के नेता सुनील सिंह साजन उनके साथ ही अस्पताल में 2 दिन भर्ती थे, सुनील साजन ने विधान परिषद में बताया कि कैसे डॉक्टरों की टीम ने बेहूदा हरकत करके चेतन जी का अपमान किया,
पहले तो चिकित्सा टीम ने पहचानने से इंकार कर दिया मगर बताने पर उनका नाम लेकर बिना किसी सम्मान के बुलाया।
जब एक पूर्व क्रिकेटर और कैबिनेट मंत्री का यह हश्र हो सकता है तो फिर एक आम जनता का क्या हश्र होगा।
फिलहाल अच्छा हुआ क्रिकेटर से राजनेता बने चेतन चौहान सभ्य और मृदुल स्वभाव के थे, उनका कई इंटरव्यू देखकर ऐसा लगता कि वह सादगी की मूर्ति थे।

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कोरोना योद्धा… लगातार संघर्ष

करीब छह महीने से कोविड-19 से हर इंसान जूझ रहा है। शुरुआती दौर में डर और दहशत का माहौल था लेकिन लोग ज्यादा संक्रमित नहीं थे। दवाई ना होने की वजह से मृत्युदर बढ़ते जा रही थी फलस्वरूप लाकडाउन किया गया और बॉर्डर सीमाएं सील कर दी गई। कुछ कफ्र्य जैसा माहौल हो गया था मगर फिर भी हालत में कोई सुधार नहीं आया सो लड़ाई बदस्तूर जारी है अभी तक। इस महामारी से लड़ने में सिर्फ आमजन ही नहीं बल्कि साइलेंट रुप से एक योद्धा वर्ग भी काम कर रहा हैं और उनका जिक्र भी जरूरी हो जाता है क्योंकि युद्ध लड़ते लड़ते बहुत से योद्धा शहीद भी हो गए हैं। जी सही समझा, मैं डॉक्टरों की ही बात कर रही हूं। करीब 18 राज्यों में 200 के करीब डॉक्टरों की मौत हो चुकी है। अब तक मेडिकल एसोसिएशन के अनुसार तमिलनाडु में 43, महाराष्ट्र में 23, गुजरात में 23, बिहार में 19, पश्चिम बंगाल में 16, कर्नाटक में 15, दिल्ली में 12 और उत्तर प्रदेश में 11 डॉक्टरों की मौतें हो चुकी है।
एक डॉक्टर जिसे भगवान का दूसरा रूप माना जाता है। इस महामारी में ये डाक्टर्स अपनी जान जोखिम में डाल कर लोगों के जीवन की रक्षा कर रहे हैं और इसी बचाव कार्य में लगे रहने के कारण वो अपने घर परिवार और बच्चों से दूर रह रहे हैं। घर के अंदर उनको एंट्री नहीं मिलती, घर के बाहर कुछ मीटर की दूरी पर वह अपने परिवार, बच्चों और घर के अन्य सदस्यों को दूर से निहार कर संतोष कर लेते हैं। यह बहुत दुखदाई स्थिति है जहां व्यक्ति घर परिवार के साथ समय बिताता है, साथ रहता है वहां इस तरह की दूरी तकलीफदेह होती है। जो डॉक्टर इलाज करते हुए संक्रमित हो गए हैं, मेडिकल एसोसिएशन ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर सभी डॉक्टर के लिए स्वास्थ्य बीमा उपलब्ध कराने की मांग की है। कोरोना जंग लड़ रहे योद्धाओं के लिए यह जरूरी भी है कि उन्हें और उनके परिवार को स्वास्थ्य सुविधा मिले।
ध्यान देने वाली बात यह भी है कि डॉक्टरों के साथ-साथ स्वास्थ्य सेवा कार्य में उनका साथ उनके सहयोगी भी देते हैं। नर्स जिनका स्वास्थ्य सेवा में बड़ा योगदान रहता है, ट्रेंड नर्सेज एसोसिएशन ऑफ इंडिया के आंकड़ों के तहत महाराष्ट्र, गुजरात और पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक स्टाफ नर्स कोरोना से संक्रमित हैं और कोविड से सबसे ज्यादा नर्सों की मौत भी इन्हीं राज्यों में हुई है। यह दुखद है कि तमिलनाडु सरकार ज्यादा मौतों पर भरोसा नहीं कर रही है और अपने यहां हुई 43 मौतों को स्वीकार नहीं कर रही है और इनके प्रमाण मांग रही है। आई एम ए जूनियर विंग के चेयरमैन डा. अब्दुल हसन ने बताया कि शुरू में सोशल डिस्टेंसिंग मेंटेन नहीं हुई और पीपीई किट की क्वालिटी भी खराब थी, साथ ही बुखार और गैर बुखार वाले मरीजों को अलग-अलग रखने में भी कोताही बरती गई जिसका खामियाजा डॉक्टरों को भुगतना पड़ा। डॉक्टर और उनके परिजनों को बीमार होने के बाद भी अस्पताल में बेड और उचित स्वास्थ्य सेवाएं नहीं मिल पा रही है। इस बात को लेकर उनमें असंतोष व्याप्त है और अब डॉक्टर्स ‘मृत्यु की वजह के’ प्रमाण पत्र इकट्ठे कर सरकार को सौंपने की तैयारी कर रहे हैं।

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जातिवाद का जहर बोते राजनेता

राजनीति में हमेशा खाने और दिखाने के दांत अलग-अलग होते हैं। राजनीतिक पार्टियां अक्सर कहती तो यह हैं कि हम जाति आधारित राजनीति नहीं करते हैं, पर इन राजनीतिक पार्टियों के ज्यादातर निर्णय जाति आधारित राजनीति के आसपास ही होते हैं। मुख्यमंत्री बनाना हो या फिर किसी राज्य का पार्टी अध्यक्ष बनाना हो या फिर विधानसभा चुनाव का टिकट देना हो, या फिर जिला, तहसील या पंचायत सदस्य के उम्मीदवार का चुनाव करना हो, इन तमाम निर्णयों के आसपास जातिगत राजनीति की जबरदस्त पकड़ होती है। जिस विधानसभा क्षेत्र में जिस जाति के वोट अधिक होते है, उस क्षेत्र में उसी जाति का उम्मीदवार उतारा जाता है या फिर जाति का काम्बिनेशन कर के उम्मीदवार पसंद किया जाता है। इस मामले में सारी योग्यताएं धरी की धरी जाती हैं। मात्र जातिगत योग्यता को महत्व दिया जाता है।
उत्तर प्रदेश में इस समय ब्राह्मण वोटरों को खुश करने के लिए राजनीतिक पार्टियों में होड़ चल रही है। इन दिनों ब्राह्मण शिरोमणि कहे जाने वाले परशुराम की मूर्ति लगवाने के लिए समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी के बीच होड़ लगी है। पिछले दिनों समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पार्टी के तीन महत्वपूर्ण ब्राह्मण नेताओं अभिषेक मिश्रा, मनोज कुमार पांडेय और माताप्रसाद पांडेय से मुलाकात की। इस मुलाकात के बाद अभिषेक मिश्रा ने घोषणा की कि पार्टी की ओर से लखनऊ में 108 फुट ऊंची भगवान परशुराम की प्रतिमा लगवाई जाएगी। इस घोषणा के कुछ घंटे बाद ही उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने प्रेस कान्फ्रेंस कर के घोषणा की कि अगर बसपा-2022 में सत्ता में आती है तो परशुराम की 108 फुट से भी ऊंची मूर्ति लगवाएगी। इसके अलावा पार्कों एवं अस्पतालों के नाम भी परशुराम के नाम से किए जाएंगे।
बसपा नेता मायावती की इस घोषणा के बाद समाजवादी पार्टी के नेता भड़क उठे। पूर्व कैबिनेट मंत्री अभिषेक मिश्रा ने तो यहां तक कह दिया कि मायावती चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। तब उन्हें परशुरामजी की मूर्ति लगवाने की याद क्यों नहीं आई? सपा सरकार ने परशुराम जयंती पर छुट्टी की घोषणा की थी, जिसे बाद की सरकार ने रद्द कर दिया। समाजवादी पार्टी के एक अन्य नेता पवन पांडेय ने कहा कि तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार का नारा देने वाली बसपा की नेता मायावती को आज ब्राह्मणों की याद आ रही है और ब्राह्मणों के सम्मान की बात कर रही हैं। लेकिन अब परशुरामजी के वंशजों ने मन बना लिया है कि वे कृष्ण के वंशजों के साथ ही रहेंगे।
दूसरी ओर कांग्रेस आरोप लगा रही है कि कांग्रेस के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जतिन प्रसाद ने उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण चेतना संवाद की घोषणा की है। जतिन प्रसाद की इस घोषणा के बाद ही सपा और बसपा को ब्राह्मणों की चिंता सताने लगी है। जतिन प्रसाद का कहना है कि पिछले कुछ समय से ब्राह्मणों पर उत्तर प्रदेश में लगातार अत्याचार हातो रहा है और इन दोनों पार्टियों के नेता चुप बैठे रहे। उनका कहना है कि मूर्ति लगवाने की अपेक्षा जरूरत इस बात की है कि ब्राह्मणों को न्याय दिलाया जाए। इस समय की बीजेपी की सरकार में उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों पर खूब अत्याचार हुआ है। ऐसे में ब्राह्मण समाज का एक होना जरूरी है। कांग्रेस के नेता जतिन प्रसाद ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिख कर परशुराम जयंती पर रद्द की गई छुट्टी को फिर से बहाल करने की मांग की है। कांग्रेस के ब्राह्मण नेताओं जतिन प्रसाद सहित पूर्व सांसद राजेश मिश्रा लगातार ब्राह्मणों पर हो रहे अत्याचार का मुद्दा उठा कर पीड़ित ब्राह्मणों से मुलाकात कर रहे हैं। इसी तरह लखनऊ से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ चुके आचार्य प्रमोद कृष्णम् तथा उत्तर प्रदेश कांग्रेस के मीडिया पेनलिस्ट अंशु अवस्थी भी ब्राह्मणों के मुद्दे को जोर-शोर से उछालते हुए समाज में घूम-घूम कर सभी से मिल रहे हैं।

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विश्वास पर आज भी अंधविश्वास है भारी

आज जबकि तकनीकी का युग है और इस युग में जहां चंद्रमा और सूर्य पर जाने की होड़ मची है और वैज्ञानिकों ने अपनी कार्यक्षमता और बुद्धि विवेक से सूर्य के विक्रम प्रकाश व किरणों तथा चंद्रमा पर प्लाट काटना, चंद्रमा पर व्यक्तियों का पहुंचना इतना सब कुछ अर्जित कर लिया है । लेकिन आज भी इस दुनिया और समाज में एक वर्ग ऐसा है जो इन तकनीकी दुनिया से हटकर और इन पर विश्वास ना करते हुए आज भी अंधविश्वास पर अपने आप को बलि चढ़ा रहा है ।
आज जहां घातक बीमारियों जैसे टीवी, कैंसर और भी कई बीमारियों का इलाज वैज्ञानिक पद्धति से लोग कराते हैं और बड़े-बड़े डॉक्टरों से ऐसी बीमारियों के लिए देश दुनिया के अस्पतालों में रहकर भारी भरकम पैसा खर्चा करते हैं । परंतु आज भी हमारे वर्ग में वैचारिक भ्रांतियाँ उत्पन्न है जो इंसानों की जान जोखिम में डाल रही है । तंत्र , मंत्र की यदि हम बात करें तो यह न केवल समाज के निम्न स्तर और अनपढ़ों की बीच में ही अपनी पैठ बनाए हुए हैं बल्कि यह हमारे समाज के बुद्धिजीवी, पढ़े लिखे और फिल्मी हस्तियों में भी इस पर विश्वास किया जाता है ।
नेता अपने चुनावी हथ कंडो को जीतने के लिए इसका प्रयोग करते हैं । घर में अगर किसी प्रकार की लगातार विपत्तियां आती है तब भी घर के लोग अंधविश्वास की और अपने आप को ढाल लेते हैं क्या आज हमारे समाज में परमात्मा और वैज्ञानिक युग में विश्वास पर अंधविश्वास अपनी जड़ें मजबूत करे हुए हैं । यही कारण है कि यदि किसी गांव, शहर या परिवार में किसी जीव, जंतु, बिशेष कर साँप के द्वारा काटा जाता है तो सबसे पहले ऐसे लोग जड़ी बूटियां झाड़-फूंक पर विश्वास करते हैं और ऐसे लोगों की तलाश की जाती है जो मंत्रों के द्वारा उस जीव जंतु के जहर को उतार सकें । जबकि यथार्थ में ऐसा संभव नहीं है क्योंकि वैज्ञानिक पद्धति में यदि हम बात करते हैं तो हमारे शरीर की रक्त मांसपेशियां , रक्त को हृदय के पंपिंग के द्वारा या तो शरीर में ऊपर या नीचे की ओर नियमित रूप से संचार करती रहती है । जिसके द्वारा हमारे अंगों का नियमित रूप से काम करना, चलाना, तारतम्यता बनी रहती है । यदि हमारे किसी भी अंग में हमारे रक्त और ऑक्सीजन नहीं पहुंचती है, तो वह अंग हमारा वैज्ञानिक पद्धति से काम करना बंद कर देता है अर्थात् जिसे हम लकवा या अंग का शून्य हो जाना कहते हैं ।

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