Tuesday, June 18, 2024
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लेख/विचार

समानता वहीं पर सार्थक है जहां विचार स्वतंत्र हों

लेकिन कभी कभी निरंकुश स्वतंत्रता अराजकता को जन्म देती है
बात सिर्फ आत्मिक संतुष्टि की होनी चाहिए लेकिन उसके लिए ज्ञान बहुत जरूरी है क्योंकि अज्ञानी स्त्री ये नहीं समझ पाती की सच में उसकी संतुष्टि का साधन क्या है ।मंजिल तक पहुंचना तो वो जानती है लेकिन पैरों में कीचड़ लगाकर जाना है या पैरों को साफ करके ये उसे अध्यात्म और ज्ञान सिखाता है।चरित्र का निर्माण कोई मापदंड के अनुसार नहीं होना चाहिए, मापदंड अगर लिया जाए तो सभी द्रोपदी का अनुसरण करके सती बन जाएं,,,, सीता के चरित्र को अपनाकर जीवन को संघर्ष और त्याग में व्यतीत करें। सीता की उपमा देकर आज पुरुष स्त्री को उनकी मर्यादा को याद दिलाता है लेकिन खुद कितना चरित्रवान है ये भूल जाता है।
बात सिर्फ इतनी की इस पृथ्वी पर जन्म लेने वाले मनुष्य को सिर्फ तीन व्यक्तियों का ऋणी होना चाहिए – ,,, माता, पिता तथा गुरु उनके अलावा तीसरा कोई नहीं जिसका उसके निजी जीवन को बदलने का अधिकार हो, और इनकी भी दखलंदाजी एक आयु और सीमा तक होनी चाहिए, बाकी जितने लोग उसे अनुशासित करते हैं सिर्फ अपनी खुशी और स्वार्थ के लिए करते हैं।

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विकास की कहानी का हिस्सा बने अब सिलेज

इन भयावह समय का मुख्य तकाजा यह है कि कोरोना वायरस अब आने वाले कुछ समय के लिए हमारे जीवन का एक अटूट हिस्सा है और अब हमें इसके आसपास काम करने की जरूरत है। एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था के रूप में भारत की उपलब्धियों पर हमें गर्व है, कोरोना वायरस से उपजी महामारी ने
तमाम देशों की अर्थव्यवस्था को जबरदस्त नुक्सान पहुंचाया है। हमारा देश भी इससे अछूता नहीं। बावजूद इसके ऐसी आशा है कि हमारा देश इस संकट से जूझते हुए अपनी व्यवस्था को पुन: सुचारू कर लेगा, किंतु इन सबके लिए हमारी कृषि प्रधानता वाली रीति-नीति में कुछ ठोस व्यापक कदम उठाने होंगे, जिससे खासकर हमारे अन्नदाता और मजदूर वर्ग को कोई विशेष आर्थिक नुक्सान का सामना न करना पड़े। औद्योगिक इकाइयों से लेकर सभी कारोबार आज अपने पुराने दिन वापस पाने की कोशिश में हैं।

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विदेशी प्लांट जिंदगी को इतना सस्ता क्यों समझते हैं

आंध्र प्रदेश के विशाखापट्नम में एलजी पॉलिमर्स कम्पनी में गैस रिसाव ने 36 साल पुरानी भोपाल गैस त्रासदी की याद को फिर एक बार ताजा कर दिया है। भोपाल में 3 दिसम्बर 1984 को अमेरिकी कम्पनी यूनियन कार्बाइट से जहरीली गैस लीक होने से 15 हजार से अधिक लोगों की मौत हुई थी और हजारों लोग सांस और दूसरी शारीरिक बीमारियों से ग्रस्त हुए थे। काफी संख्या में लोग अंधे और विस्थापित हो गए थे। इतने सालों बाद भी पीड़ितों को आज तक न्याय नहीं मिल पाया।
आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में एक केमिकल इंडस्ट्री से जहरीली गैस लीक होने की घटना बेहद दुखद है। इसमें दस से भी ज्यादा लोगों की मौत हो गई और सैकड़ों लोग बीमार हो गए हैं, जिनका अलग-अलग अस्पतालों में इलाज चल रहा है। घायलों में से कुछ की हालत गंभीर है। विशाखापत्तनम शहर के नजदीक आरआर वेंकटपुरम गांव में एलजी पॉलिमर इंडस्ट्री में गैस का रिसाव गुरुवार को तड़के शुरू हुआ।

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कोरोना वैश्विक महामारी में फार्मासिस्टों को नियुक्त करे सरकार, शिक्षकों पर न करे अत्याचार

आज दुनिया के बड़े-बड़े देश जब कोरोना वैश्विक महामारी से अपने आप को असहाय महसूस कर रहे हैं जिनके पास दुनिया की सबसे बड़ी चिकित्सा पद्धति है, तो फिर भारत की विसात ही क्या है जिनके पास अपने योद्धाओं को पहचानने तक की क्षमता नहीं है। चिकित्सा विज्ञान का एक ऐसा योद्धा जो चिकित्‍साशास्त्र का मेरूरज्जु कहा जाता है जिन्हें लोग फार्मासिस्ट के नाम से जानते हैं, जिसे औषधियों का जनक कहा जाता है, जिनका औषधि से सम्बंध माँ और पुत्र की भाति होता है, जो औषधियों के हर एक गुण को अपनी विद्वता के द्वारा पहचानता है
और ऐसे योद्धा को कोरोना के खिलाफ इस युद्ध मे उसे उसके रणभूमि से अलग कर दिया जाता है जैसे कर्ण को भीष्म ने किया था। औषधियों की उपयोगिता और विषाक्तता को भलीभांति से पहचानता हो जो वह कोरोना के खिलाफ इस युद्ध मे कृष्ण जैसा सारथी हो सकता है, लेकिन इनका शोषण भारत मे तो विगत सरकारों के द्वारा होता आ रहा है और वर्तमान सरकार तो सारी हदें पार कर चुकी है।

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प्रकृति का सम्मान करें

कहते हैं ईश्वर को देखना है तो प्रकृति को गौर से देखो और महसूस करो। ये प्रकृति ही है जो हमें सिर्फ देती ही है बिल्कुल जीवनदायी मां की तरह। जितना हम उसे देते हैं या उसे पोसते हैं उसके बदले में कई गुना अधिक वह हमें दे देती है। यह हमारी अज्ञानत और मूढ़ता ही है कि हम अपने विनाश के सौदागर खुद ही बन रहे हैं। हमारे निहित स्वार्थ हमें अपने और अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए कुछ सोचने नहीं दे रहे।
कभी आपने महसूस किया है कि सुबह शांत वातावरण में पक्षियों का चहचहाना, हवा की सरसराहट, फूलों का खिलना, सुबह की धूप ऐसा लगता है कि उस समय देवता पृथ्वी घूम रहे हों। उस समय मैं मगन रहती हूं बाद में पनपते हैं ये विचार। बात वही पुरानी है कि इस लाकडाउन ने पर्यावरण को लेकर एक उदाहरण हमारे सामने रख दिया है कि हम इंसान पर्यावरण पर कितना अत्याचार कर रहे हैं?

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प्रकृति और कोविड-19ः विज्ञान ने मनुष्यता को स्वर्ग और नर्क दोनों दिखा दिए

हाल ही में विज्ञान के अधिक उन्नतीकरण व आधुनिकीकरण का विभिन्न क्षेत्रों में मनुष्यता व पृथ्वी पर गहरा प्रभाव पड़ा है।
यदि हमारे पूर्वज इस नए दौर के चमत्कारों को देखते तो वे अचंभित रह जाते और साथ ही मानते कि ये सदी इतनी बुरी भी नहीं है जितनी उनके समय में थीं। विज्ञान की देवी ने एक ओर हमें जीवन दान का आशीर्वाद दिया तो दूसरी ओर हमें जीवन की गुणवत्ता की कमी का अभिशाप दिया है। हम इक्कीसवीं सदी में एक प्राकृतिक बम पर सवार होकर प्रवेश कर चुके हैं जो कभी भी फट सकता है, क्योंकि दिन प्रतिदिन मनुष्य का असीमित लालच व धरती मां का शोषण हो रहा है। वो दिन दूर नहीं जब न केवल हम बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ियाँ पीने का पानी व प्रकृति मां के कोमल सुंदर हरे-भरे वन-विपिन शुद्ध वायु बरसात के लिए तरसेंगे।
ये चिंता न जाने हमें कितने समय से थी, परन्तु हाल ही में कोरोना वाइरस ने हमें दिखा दिया कि हम प्रकृति के आगे कितने तुच्छ हैं। एक ओर मानव जाति कोरोना की लड़ाई में हारती जा रही है वहीं दूसरी ओर असंतुलित पृथ्वी का बहाल हो रहा है। इसका प्रमाण हमारे आसपास हुई घटनाओं में दिख रहा है। न जाने कितने सालों के शोध व वैज्ञानिकों के प्रयासों के बावजूद भी हमारी पृथ्वी की ओजोन परत में छिद्र कम नहीं हो रहे थे। जिस से सूर्य की हानिकारक यूवी किरणे पर्यावरण को नष्ट करतीं हैं। परंतु आज वे छेद न के बराबर है।

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कोविड-19 अनिवार्य चिकित्सीय सेवा की आवश्यकता

कोविड-19 के दौरान यह बात स्पष्ट हो गई कि हमें अनिवार्य सैनिक सेवा के बजाय अनिवार्य चिकित्सीय सेवा पर बहस करना चाहिए। आज इस आपदा में सरकारी डॉक्टर अकेले लड़ते नजर आ रहे हैं और संसाधन से जुझता हुये सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं ने अपना पूरा दम लगा रखा है और यह सब इसलिए भी मुमकिन हो पा रहा है क्योंकि प्रशासनिक सेवाओं ने संक्रमण रोकने के लिए अपनी पूरी जान लगा दी है। फिलहाल कोविड-19 जाँच मुख्य मुद्दा है और अब जाँच में वेटिंग चलने लगी है जो कि बेहद गंभीर बात है और इसका मुख्य कारण जाँच केंद्रों की कमी, टेस्टिंग प्रोब की निर्यात निर्भरता और लैब में मानव संसाधन की कमी है।
और अगर हम गैर कोरोना मरीजों की बात करें तो स्थिति और भी खराब है देश भर की ज्यादातर निजी चिकित्सालय या तो बंद पड़े हैं या तो उसमें से चिकित्सक गायब है। इसको लेकर सरकार अपील कर रही थी और कभी कभी आदेश भी दे रही थी। इसके बावजुद भी गैर कोरोना मरीजों को ईलाज नहीं मिल पा रहा है।

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कोरोना काल में भी कैसे संजीदा रखें रोमांटिक लाइफ -संजय रोकड़े

आज तक जितनी भी महामारियां संसार में फैली है उन सबने मानव जीवन के हर पक्ष को प्रभावित किया है। एक तरफ वह भूखमरी और बेरोजगारी का संकट पैदा करती है तो दूसरी तरफ इंसानी जिंदगी की रूमानियत को भी प्रभावित करती है। कोरोना ने भी इंसान की रोमांटिक लाईफ को बुरी तरह से प्रभावित किया है।
कोरोना जैसी महामारी पर अंकुश लगाने के लिए शासन-प्रशासन का तमाम तंत्र होम क्वारंटीन को ज्यादा से ज्यादा अपनाने के लिए सलाह दे रहा है या दबाव बना रहा है। हालाकि इसके फायदे हैं तो नुकसान भी है।
इस समय होम क्वारंटीन के चलते तमाम लोगों के बीच दूरी बनाएं रखने की बात की जा रही है। शादीशुदा महिला-पुरूष को भी एक दूसरे के बीच विशेष रूप से दूरी बनाए रखने की सलाह दी जा रही है।

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भारत को ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ शब्द से इतना प्यार क्यों है

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बहुत सोच विचार के बाद सोशल डिस्टेंसिंग शब्द का प्रयोग बंद कर दिया है और प्रेस कॉनफ्रेंस में भी सावधानी बरती जा रही है कि सोशल डिस्टेंसिंग शब्द न बोला जाए।
कोरोनावायरस की महामारी के समय भारत में ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ शब्द काफी प्रचलित हो रहा है। इसका प्रयोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने भाषण में किया है. स्वास्थ्य मंत्रालय भी इसी शब्द का इस्तेमाल अपने दस्तावेजों और निर्देशों में कर रहा है।
सोशल डिस्टेंसिंग को परिभाषित करते हुए स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि ‘ये संक्रामक बीमारियों को रोकने की एक अचिकित्सकीय विधि है जिसका मकसद संक्रमित और असंक्रमित लोगों के बीच संपर्क को रोकना या कम करना है ताकि बीमारी को फैलने से रोका जाए या संक्रमण की रफ्तार को कम किया जा सके. सोशल डिस्टेंसिंग से बीमारी के फैलने और उससे होने वाली मौतों को रोकने में मदद मिलती है.’।
इसका वर्तमान संदर्भ में अर्थ ये बताया जा रहा है कि लोगों को अनावश्यक एक दूसरे के संपर्क में या पास-पास नहीं रहना चाहिए, बिना वाजिब वजह के घर से नहीं निकलना चाहिए, हाथ मिलाने या गले मिलने से परहेज करना चाहिए, ताकि कोरोनावायरस फैल न सके।

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आखिर कब तक…??

चीन से निकले कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया है। आज हर आदमी मौत के साए में जी रहा है। एक डर जीवन का कि हम सेफ रहेंगे कि नहीं? हालांकि अभी साबित नहीं हुआ है कि यह वायरस चीन का जैविक हथियार है या चमगादड़ों से फैली बीमारी है जिसने महामारी का रूप ले लिया है फिर भी इस महामारी का तांडव बहुत भयानक है। लाशों के आंकड़ों की बात करें तो इसका कोई हिसाब नहीं है। कितने ही संक्रमित लोग और डॉक्टर, नर्स की सेवाएं और हॉस्पिटल, बेड इन आंकड़ों के सामने नकारा साबित हो रहे हैं। हर रोज एक नई दिल दहला देने वाली खबर सुनाई जाती है। हमारे पास लाकडाउन के सिवा और कोई पर्याय नहीं है। लेकिन एक सवाल यह भी उपजता है कि हम बैठे बैठे आखिर कब तक घर संभाल पाएंगे? और इस पर नियंत्रण कब पाया जाएगा? सबसे बुरी हालत मजदूर वर्ग और खुदरा व्यापार वालों की है।
इस वायरस से संक्रमित लोगों का बढ़ता हुआ आंकड़ा लोगों में दहशत फैला रहा है।

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