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कानपुरः जन सामना संवाददाता। उत्तर प्रदेश सरकार के निर्देश पर क्राइस्ट चर्च डिग्री काॅलेज के महिला प्रकोष्ठ द्वारा महिला सशक्तीकरण की दिशा में महत्वपूर्ण पहल करते हुए ‘‘बालिका सुरक्षा अभियान’’ के अंतर्गत नौ दिवसीय वर्चुअल कार्यशाला बिगत 17 से 25 अक्तूबर तक आयोजित की गई। कार्यशाला के माध्यम से छात्राओं को शारीरिक, मानसिक, आत्मिक और व्यावहारिक रूप से सबल व सुदृढ़ बनने की ओर प्रयास किया गया।
कार्यशाला का आरंभ ईश्वर की आराधना के साथ शुरू किया गया। इस मौके पर महाविद्यालय के प्राचार्य डाॅ. जोजेफ डेनियल ने सभी अतिथियों और प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए उद्घाटन किया। वहीं महाविद्यालय के महिला प्रकोष्ठ की संयोजिका डाॅ. शिप्रा श्रीवास्तव (एसोसिएट प्रोफेसर, वाणिज्य संकाय, क्राइस्ट चर्च काॅलेज) ने प्रतिभागियों को इस कार्यशाला के उद्देश्य से परिचित कराया। उन्होंने स्पष्ट किया कि नव-दुर्गा के शक्ति-उपासना के नौ दिनों के समानांतर चलने वाली इस कार्यशाला का ध्येय सभी बालिकाओं में आतंरिक शक्ति एवं बाह्य दृढ़ता का संचार करना ही है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि इस कार्यशाला का लाभ सभी छात्राओं को उनके सुरक्षित व स्वस्थ भविष्य के निर्माण हेतु मिलेगा।
इसके बाद ‘‘सशक्त नारी सशक्त भारत’’ विषय पर डाॅ. अर्चना पाण्डेय (एसोसिएट प्रोफेसर, बी.एन.डी. काॅलेज) द्वारा व्याख्यान दिया गया और हेल्पलाइन नंबरों की जानकारी दी।
नौ दिवसीय कार्यशाला में प्रयाग सिंह ने सभी प्रतिभागी छात्राओं को ताइक्वानडो और मार्शल आर्ट्सकी ट्रेनिंग सफलतापूर्वक दी। गौरतलब हो कि श्री सिंह कानपुर ताइक्वानडो एसोसिएशन के सह-सचिव हैं और राष्ट्रीय स्तर के ट्रेनर भी हैं। उनके साथ सुश्री यशी सिंह ने आत्म-सुरक्षा के लिए आवश्यक प्रेशर पाॅइंट अटैक को समझाया और सिखाया।
महिला जगत
‘THIS IS SHE’ समाज सेवी गृहणियों को मिलेगी एक नई पहचान
औरत एक ऐसा शब्द जिसे इस सृष्टि का रचियता कहा जा सकता है। रचियता जो रचना करती है मनुष्य की, समाज की और संस्कारों की हमारे समाज में ऐसी कई रचनात्मक महिलाएं है जो न केवल अपनी घर.गृहस्थी अच्छे से चला रही है बल्कि समाज के लिए भी आगे बढ़कर निस्वार्थ भाव से काम कर रही है| ऐसी ही समर्पित नारियों को सम्मान देने के लिए troopel.com लाया है एक नई पहल ‘THIS IS SHE’ इस पहल के बारे में समझाते हुए troopel.com के को.फाउंडर अतुल मलिकराम ने कहा समाज में लोगों के मन में यह भ्रान्ति फैली हुई है, कि एक हाउस वाइफ घर के कामों के अलावा कुछ और नहीं कर सकती। लेकिन हमारे आस.पास ऐसी भी महिलाएं मौजूद है। जिन्होंने न सिर्फ अपने घर परिवार को संभाला बल्कि आगे बढ़कर समाज के लिए भी काम किया। समाज के उत्थान में समाज के कल्याण में इन गृहणियों का योगदान अमूल्य है। और इतना सब करने के बावजूद ये डाउन टू अर्थ है, इनकी सरलता और सहजता को सम्मानित करने के लिए हम ये मंच ‘THIS IS SHE’ लेकर आए है।
सपोर्ट फाउंडेशन ने लगाई हस्त निर्मित उत्पाद की प्रदर्शनी
कानपुर, स्वप्निल तिवारी। सपोर्ट फाउंडेशन मिशन आत्मनिर्भर के तत्वावधान में क्राफ्ट प्रदर्शनी का आयोजन शिवरतन स्टेट अपार्टमेंट में किया गया। प्रदर्शनी में हस्त निर्मित उत्पाद की प्रदर्शनी ने लोगों को खूब आकर्षित किया। सामाजिक संस्था सपोर्ट फाउंडेशन कोरोना आपदा में बन्द हुए रोजगारों से बेरोजगार हुये लोगों को मिशन आत्मनिर्भर चला कर हुनरमंद बना रोजगार की मुख्यधारा से जोड़ने का कार्य कर रही है। इसी के चलते सपोर्ट फाउंडेशन की प्रदेश अध्यक्ष ऋतिका गुप्ता के द्वारा दूसरी क्राफ्ट प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। प्रदर्शनी का शुभारंभ कार्यक्रम के मुख्य अतिथि समाजसेवी व सपोर्ट फाउंडेशन की राष्ट्रीय अध्यक्ष ज्योति शुक्ला ने दीप प्रज्वलित कर किया। मुख्य अतिथि ने संस्था के कार्यो की सराहना करते हुए इस मुहिम से जुड़े सभी सदस्यों का आभार व्यक्त करते हुए संस्था के कार्यो में हर तरह से सहयोग की साथ ही महिलाओं द्वरा हस्त निर्मित उत्पादों को देखा व सभी उत्पादों को बहुउपयोगी बताया।
महिलाएंः आत्महत्या नहीं संघर्ष करो
आंखों में सतरंगी सपने सजा कर जीवन रूपी बाग में कदम बढ़ा रहा व्यक्ति जीवनपथ पर आगे बढ़ने के बजाय मृत्यु रूपी खाई में समा जाए तो आश्चर्य की अपेक्षा आघात अधिक लगता है। आखिर अचानक कोई व्यक्ति मृत्यु को अपना कर जीवन का करुण अंत क्यों पसंद करता है?
भारतीय समाज में पुरुष जहां 64 प्रतिशत आत्महत्या करते हैं, वहीं महिलाएं 36 प्रतिशत आत्महत्या करती हैं। परंतु लेंसेट पब्लिक हेल्थ के 2017 के सर्वे के अनुसार दुनिया की जनसंख्या की गणना के अनुसार युवा और मघ्यमवर्गीय युवतियों की आत्महत्या के मामले में भारत तीसरे स्थन पर है। सोचने वाली आत यह है कि अगर भारतीय स्त्री सहनशीलता-सहिष्णुता और संघर्ष की मूर्ति कहलाती है, तब पराजय स्वीकार करके जिंदगी से स्वयं पलायन करने का कदम क्यों उठाती है?
शिक्षा और आधुनिकता के विकास के साथ महिलाओं को सपना देखने वाली आंखें मिलीं तो खुले आकाश में उड़ने के लिए पंख मिले, साथ ही आकाश भी मिला। पर उसके आजादी के साथ उड़ने वाले पंखों को काट कर बीच में तड़पने के लिए छोड़ने की सत्ता समाज ने पुरुषों के हाथों मे सौंन दी। यह भी कह सकते हैं कि पुरुषों ने अपने पास रखी। हमारा पुरुष प्रधान समाज, अनेक खामियों वाली विवाह व्यवस्था, गलत सामाजिक मूल्य, अधिक संवेदनशीलता और स्त्रियों की परतंत्रता के कारण पैदा होने वाली लाचारी एक हद तक असह्य बन जाती है। ऐसे में भयानक हताशा ही स्त्रियों केा आत्महत्या की ओर कदम बढ़ाने को मजबूर करती है।
थाॅम्सन फाडंडेशन और नेशनल क्राइम ब्यूरो के पिछले साल के आंकड़ों के अनुसार 15 से 49 साल की भरतीय महिलाओं में से 33-5 प्रतिशत घरेलू हिंसा, 8-5 प्रतिशत यौनशोषण, 2 प्रतिशत दहेज को लेकर महिलाओं ने आत्महत्या की है। भारत में संपत्ति के अधिकार से लेकर दुष्कर्म तक के कानून महिलाओें के हक में है, फिर भी देखा जाए तो महिलाओं को न्याय नहीं मिल रहा है। अध्ययन कहते हैं कि अगर अन्यायबोध हमेशा चलता रहा तो मन में घुटन सी होती रहती है। अगर यह घुटन बढ़ती रही और रही और अपनी हद पार कर गई तो महिला आत्महत्या का मार्ग अपनाती है।
गोरे रंग पर कैसे करें मेकअप
मेकअप करना हर लड़की को पसंद होता है। मगर मेकअप करना एक कला है और जरूरी नहीं कि हर कोई इस कला में माहिर हो। मेकअप अपने आप में काफी बड़ा क्षेत्र है। गोरे रंग पर मेकअप करने के तरीकों को बता रही है जन सामना की ब्यूटी एडवाइजर व सी डब्लू सी ब्यूटी एन मेकअप स्टूडियो की सेलिब्रेटी मेकअप आर्टिस्ट शालिनी योगेन्द्र गुप्ता
गोरे रंग पर मेकअप की ज्यादा परत अच्छी नहीं लगती। इसलिए जरूरी है कि इस तरह की स्किन टोन में हमेशा एक शेड डीप मेकअप ही किया जाए जिससे चेहरे पर मेकअप ओवर न लगे। गोरे रंग पर ज्यादा कंटूरिंग की जरूरत नहीं है। अगर कंटूरिंग करनी है तो हमेशा सॉफ्ट ब्राउन या सॉफ्ट ब्रोंज कलर्स के साथ करें। कंसीलर हमेशा आपकी स्किन टोन से मैच करता हुआ होना चाहिए। सिर्फ दाग-धब्बे होने की स्थिति में ही एक शेड ब्राइट कंसीलर का इस्तेमाल करें। कॉम्पैक्ट भी स्किन टोन से एक शेड डार्क ही रखें। अगर आपने आंखों पर ब्राइट कलर इस्तेमाल किये हैं तो आपके लिए न्यूड ब्राउन शेड और स्किन कलर की लिपस्टिक बेस्ट रहेगी। रेड कलर की लिपस्टिक लगाना चाहती हैं तो आप आईशैडो में वॉर्म कलर जैसे ब्राउन, रेड, मैरून और गोल्ड जैसे कलर का ही प्रयोग करें।
बॉम्बे टाइम्स फैशन वीक में डिजाइनर पल्लवी गोयल के लिए शो स्टॉपर बनीं डेज़ी शाह
डेज़ी शाह ने पहली बार बॉम्बे टाइम्स फैशन वीक में शोस्टॉपर के रूप में रैंप वॉक किया। दिवा ने एसपीजे साधना स्कूल के साथ मिलकर डिजाइनर पल्लवी गोयल के लिए शोस्टॉपर की भूमिका निभायी।
डेज़ी ने एक न्यूड बेज लहंगे में वन शोल्डर रफ़ल्ड ब्लाउज के साथ के साथ रैम्प पर एंट्री मारी। यह पहला मौका नहीं है जब डेज़ी को एक शो स्टॉपर के रूप में देखा गया है, इससे पहले उन्हें लक्मे फैशन वीक में अमित जीटी और कंचन मोर जैसे प्रसिद्ध डिजाइनरों के लिए सो स्टॉपर के रूप में रैम्प वॉक किया था।
चाहे वो गाउन हो, इंडो वेस्टर्न आउटफिट हो या ट्रेडिशनल लुक; हर बार रनवे पर चलने के दौरान उन्हें सभी की वाह वाही लूटने का मौका मिलता है। इस बार डेज़ी ने एक रॉयल ट्रेडिशनल ड्रेस को कैरी किया और बिल्कुल आश्चर्यजनक रूप से सबके सामने पेश हुई।
महिला किसान… महिला सम्मान की हकदार..?
यूं तो महिला दिवस 8 मार्च को मनाया जाता है और बड़े बड़े आयोजन भी होते हैं उस दिन, लेकिन फिर भी कहीं न कहीं लोग मूल मुद्दे से भटक जाते हैं। महिला दिवस मेरी समझ से मानवीय मूल्यों, स्त्री हकों और उनके उत्थान के लिए प्रयासरत और जो आवाज उठाती हैं, जागरूकता पैदा करती हैं वो ही महिला दिवस को सार्थक करते हैं। आज एक पिछड़े तबके की ओर ध्यान ले जाना चाहूंगी जो समाज में कार्य की दृष्टि से पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कार्य कर रहीं हैं और कहीं ज्यादा मेहनती भी हैं लेकिन उनका दर्जा दोयम से भी नीचे है। मैं बात कर रही हूं महिला किसानों की।
महिला किसान दिवस 15 अक्टूबर को मनाया जाता है। महिला किसान दिवस जिसका उद्देश्य महिलाओं में खेती किसानी में भागीदारी को बढ़ावा देना है। मेरी नजर में महिला दिवस के दिन महिला किसान की बात ना करके उनके साथ अन्याय करना होगा। महिला किसान जो बीजारोपण,रोपाई, उर्वरक वीटा, फसल कटाई और भंडारण वगैरह में पुरुषों के साथ बराबरी में काम करती है और एक बात स्पष्ट कर देना चाहूंगी कि किसान महिला खेतों में काम करने के बाद घर भी संभालती है और वहीं पुरुष अपना समय मनोरंजन में व्यतीत करता है। पुरुषों के मुकाबले में महिला किसान ज्यादा काम करती है तो उसे भेदभाव का सामना क्यों करना पड़ता है? क्यों उन्हें किसान का दर्जा नहीं मिल पाता है? किसान की पत्नी के रूप में ही क्यों पहचानी जाती हैं? सबसे बड़ा भेदभाव उनकी मजदूरी को लेकर होता है। पुरुषों के मुकाबले में उन्हें कम मजदूरी मिलती है। ज्यादातर किसान महिलाओं को नियम कानून की जानकारी नहीं होती है। पति की मृत्यु के बाद परिवार की जिम्मेदारी पत्नी पर आ जाती है लेकिन नियम कानून की जानकारी ना होने की वजह से वह अपनी जमीन पर मजदूरों की तरह काम करती है क्योंकि परिवार के पुरूष ( देवर, जेठ, भाई) महिला की जानकारी के अभाव के कारण उनका बेजा फायदा उठाते हैं। कई किसान महिलाएं कोर्ट कचहरी के चक्कर से बचने के लिए अपनी लड़ाई नहीं लड़ती हैं। सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयासों के बावजूद इनकी स्थिति में कोई सुधार नहीं आ रहा है।
Read More »महिला दिवस क्या एक फैशन..?
मैं वोमे्न्स डे वाले दिन कुछ नहीं कहती एक चिढ़ सी होती है, इसलिए नहीं कि लड़कियां अभी भी पीछे हैं। सामाजिक रूप से गौर किया जाए तो कई पहलू दिखाई देते हैं कहीं आर्थिक स्थिति, कहीं अशिक्षा, कहीं धर्मांधता या परिवेश ऐसा होता है कि लड़कियां आगे बढ़ नहीं पाती हैं। लेकिन मुझे क्रोध इसलिए आता है महिला सम्मान या महिला दिवस सिर्फ मीटिंग, इटिंग और फंक्शन मात्र तक सिमट रहे हैं और जमीनी हकीकत से दूर हो रहें हैं। मैं ऐसा नहीं कह रही कि लड़कियों का विकास नहीं हो रहा है या वह नए कीर्तिमान नहीं स्थापित कर रही हैं, लेकिन अभी भी कहीं न कहीं स्त्रियां दुखी और पीड़ित हैं। उनकी भावनाओं की कद्र नहीं होती है और उन्हें दोयम दर्जा मिलता है। अखरने वाली बात यह भी लगती है कि महिला का सम्मान किसी एक दिन का मोहताज क्यों? जब वो सम्माननीय है तो उसे सहयोग कर उसका सम्मान बढ़ाइये।
महिला दिवस क्यों मनाया जाता है इसकी जानकारी भी सही तरीके से लोगों नहीं होती है। लेकिन प्रचार-प्रसार करने में लोग आगे रहते हैं। एक नजर इस बात पर कि महिला दिवस क्यों मनाया जाता है? 8 मार्च को पूरी दुनिया में महिला दिवस मनाया जाता और करीब 29 देशों में इस दिन सार्वजनिक छुट्टी होती है। साधारणतया इस दिन लोग महिला के त्याग, समर्पण या किसी उपलब्धि की सराहना करते हैं। स्त्री को कोई उपहार देकर महिला दिवस की खुशी जाहिर करते हैं। सही है, लेकिन ये सिर्फ एक मनोरंजन का साधन भर होता है। स्त्रियों को पूजना या उपहार देना महिला दिवस नहीं है बल्कि सही मायनों में उनका आत्मबल बढ़ाना और और जमाने के साथ कदमताल मे सहयोग करना, उनके लिए सम्मान से कम नहीं है।
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महिलाओं के लिए ये कैसी लड़ाई जिसे महिलाओं का ही समर्थन नहीं
मनुष्य की आस्था ही वो शक्ति होती है जो उसे विषम से विषम परिस्थितियों से लड़कर विजयश्री हासिल करने की शक्ति देती है। जब उस आस्था पर ही प्रहार करने के प्रयास किए जाते हैं, तो प्रयास्कर्ता स्वयं आग से खेल रहा होता है। क्योंकि वह यह भूल जाता है कि जिस आस्था पर वो प्रहार कर रहा है, वो शक्ति बनकर उसे ही घायल करने वाली है।
पहले शनि शिंगणापुर, अब सबरीमाला। बराबरी और संविधान में प्राप्त समानता के अधिकार के नाम पर आखिर कब तक भारत की आत्मा, उसके मर्म, उसकी आस्था पर प्रहार किया जाएगा?
आज सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह उठ रहा है कि संविधान के दायरे में बंधे हमारे माननीय न्यायालय क्या अपने फैसलों से भारत की आत्मा के साथ न्याय कर पाते हैं। क्या संविधान और लोकतंत्र का उपयोग आज केवल एक दूसरे की रक्षा के लिए ही हो रहा है। कहीं इनकी रक्षा की आड़ में भारत की संस्कृति के साथ अन्याय तो नहीं हो रहा?
केवल पुरुषों को दोष देने से काम नहीं चलेगा
पुरानी यादें हमेशा हसीन और खूबसूरत नहीं होती। मी टू कैम्पेन के जरिए आज जब देश में कुछ महिलाएं अपनी जिंदगी के पुराने अनुभव साझा कर रही हैं तो यह पल निश्चित ही कुछ पुरुषों के लिए उनकी नींदें उड़ाने वाले साबित हो रहे होंगे और कुछ अपनी सांसें थाम कर बैठे होंगे। इतिहास वर्तमान पर कैसे हावी हो जाता है मी टू से बेहतर उदाहरण शायद इसका कोई और नहीं हो सकता।
दरअसल इसकी शुरुआत 2006 में तराना बुरके नाम की एक 45 वर्षीय अफ्रीकन- अमेरिकन सामाजिक कार्यकर्ता ने की थी जब एक 13 साल की लड़की ने उन्हें बातचीत के दौरान बताया कि कैसे उसकी मां के एक मित्र ने उसका यौन शोषण किया। तब तराना बुरके यह समझ नहीं पा रही थीं कि वे इस बच्ची से क्या बोलें। लेकिन वो उस पल को नहीं भुला पाईं, जब वे कहना चाह रही थीं, ‘मी टू’, यानी ‘मैं भी’, लेकिन हिम्मत नहीं कर पाईं।
शायद इसीलिए उन्होंने इसी नाम से एक आंदोलन की शुरुआत की जिसके लिए वे 2017 में ‘टाइम परसन आफ द ईयर’ सम्मान से सम्मानित भी की गईं।
हालांकि मी टू की शुरुआत 12 साल पहले हुई थी लेकिन इसने सुर्खियाँ बटोरी 2017 में जब 80 से अधिक महिलाओं ने हाॅलीवुड प्रोड्यूसर हार्वे वाइंस्टीन पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया जिसके परिणामस्वरूप 25 मई 2018 को वे गिरफ्तार कर लिए गए। और अब भारत में मी टू की शुरुआत करने का श्रेय पूर्व अभिनेत्री तनुश्री दत्ता को जाता है जिन्होंने 10 साल पुरानी एक घटना के लिए नाना पाटेकर पर यौन प्रताड़ना के आरोप लगाकर उन्हें कठघड़े में खड़ा कर दिया। इसके बाद तो ‘मी टू’ के तहत रोज नए नाम सामने आने लगे। पूर्व पत्रकार और वर्तमान केंद्रीय मंत्री एम जे अकबर, अभिनेता आलोक नाथ, रजत कपूर, गायक कैलाश खेर, फिल्म प्रोड्यूसर विकास बहल, लेखक चेतन भगत, गुरसिमरन खंभा, फेहरिस्त काफी लम्बी है।
मी टू सभ्य समाज की उस पोल को खोल रहा है जहाँ एक सफल महिला, एक सफल और ताकतवर पुरुष पर आरोप लगा कर अपनी सफलता अथवा असफलता का श्रेय मी टू को दे रही है। यानी अगर वो आज सफल है तो इस ‘सफलता’ के लिए उसे ‘बहुत समझौते’ करने पड़े। और अगर वो आज असफल है, तो इसलिए क्योंकि उसने अपने संघर्ष के दिनों में ‘किसी प्रकार के समझौते’ करने से मना कर दिया था।